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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य कोमल-स्वभावा : इसका व्यवहार अत्यन्त कोमल और मृदु है। यह अपनी सखियों के प्रति स्नेह रखती है। उनके साथ ही अनेक प्रकार की क्रीड़ाएँ करती है तथा उन्हीं के साथ वनों ओर पर्वतों पर घूमने जाती है। राजकुमारी होने पर भी इसमें अभिमान नही है। अपनी प्रिय सखी मलयसुन्दरी में इसे अगाध प्रेम और विश्वास है। अपने प्रिय के विषय में भी यह मलयसुन्दरी के परामर्श को सम्मान देती है। इसके मृदु व्यवहार के कारण सभी सखियाँ इससे प्रसन्न रहती हैं तथा सदैव इसके हित का चिन्तन करती है। पितृ आज्ञाकारिणी : तिलकमञ्जरी का अपना पिता में गाढ़ अनुराग है। यह सदा अपने पिता की आज्ञा का पालन करती है। हरिवाहन से मिलने की आशा समाप्त होने पर जब यह जल समाधि लेने का निर्णय करती है, तब उसके पिता उसे छः माह प्रतीक्षा करने को कहते है। अपने पिता की आज्ञा पालनार्थ ही यह छ: माह तक विरहानल में जलती रहती है।
अतिथि सत्कार की भावना : यह 'अतिथि देवो भव' की भावना में विश्वास रखती है और बड़े मनोयोग से अपने अतिथियों की सेवा करती है। यह अपनी सखी मलयसुन्दरी के अतिथि को अपना अतिथि मानती है तथा अपने हाथ से ताम्बूल देती है। जब यह मलयसुन्दरी और हरिवाहन को अपने महल में ले जाती हैं, तो उनकी इच्छाओं और सुखसुविधाओं का पूरा ध्यान रखती है। हरिवाहन की देख रेख के लिए वह अपनी प्रिय सखी मृगााङ्कलेखा को नियुक्त कर देती है तथा उनके भोजन मनोरंजन और विश्रामादि का भी उत्तम प्रबन्ध करती है। जब हरिवाहन छिपे तौर पर नगर देखने की इच्छा करता है, तो यह अतिथि की इच्छा का सम्मान करते हुए इसका प्रबन्ध कर देती है। अपने अतिथियों की सेवा सत्कार करके यह बहुत प्रसन्न होती है। मलयसुन्दरी यह काञ्चीनरेश कुसुमशेखर की पुत्री है। इसकी माता का नाम गन्धर्वदत्ता है। जो विद्याधर सम्राट चक्रसेन की पुत्री है। यह अत्यधिक रूपवती है। पूर्वजन्म में इसका नाम प्रियंवदा था तथा यह दिव्य वैमानिक सुमाली की पत्नी थी। पूर्वजन्म के
105. तिलकमञ्जरी स्वरमवदत्- 'सखि, किर्थमभिदधासि माम्। त्वमेव जानासि
यत्कर्तुमुचितम्'। ति.म., पृ. 385 106. वही, पृ. 363