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________________ तिलकमञ्जरी के पात्रों का चारित्रिक सौन्दर्य आदर्श प्रेमिका : हरिवाहन के दर्शन होने तक यौवनावस्था में पदार्पण करने पर भी इसे पुरुष संपर्क से अरुचि थी। हरिवाहन को देखने के पश्चात् उसी पल से उसके हृदय में काम ने वास कर लिया। इस कामज्वर ने इसको इतना पीड़ित कर दिया कि वह मलयसुन्दरी के आश्रम में उससे मिलने जाती है। इसके हृदय में एकमात्र हरिवाहन का ही वास है। यह सदा उसका ही चिन्तन करती है। हरिवाहन के समरकेतु की खोज में जाने पर यह उसकी यादों में ही समय व्यतीत करती है। हरिवाहन से मिलने की आशा समाप्त होने पर यह अदृष्टपार सरोवर में जलसमाधि लेने के लिए चल पड़ती है। इस प्रकार यह स्पष्ट है, कि तिलकमञ्जरी एक आदर्श प्रेमिका है, जो स्वप्न में भी हरिवाहन के अतिरिक्त किसी अन्य का विचार नहीं करती। पतिव्रता : तिलकमञ्जरी एक सच्चरित्रा व पतिव्रता नारी है। धनपाल ने इसके पातिवर्त्य धर्म के उज्जवल पक्ष को सफलता पूर्वक प्रकाशित किया है। पूर्वजन्म में इसका प्रियङ्गसुन्दरी था, जो अपने पति ज्वलनप्रभ को अगाध प्रेम करती थी। ज्वलनप्रभ के स्वर्ग से निकलने के पश्चात् प्रिय वियोग में उसे खोजने जम्बुद्वीप जाती है। उसको वहां न पाकर शेष आयु उसकी प्रतीक्षा में व्यतीत कर देती है। वर्तमान जन्म में भी तिलकमञ्जरी पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण ही ज्वलनप्रभ के अतिरिक्त सभी पुरुषों से द्वेष रखती है। हरिवाहन को देखकर इसका अन्त:करण उसे इसलिए स्वीकार कर लेता है क्योंकि पूर्वजन्म में वह इसका पति था। अभिज्ञानशाकुन्तल में भी जब दुष्यन्त आश्रमवासिनी शकुन्तला के पाणिग्रहण के विषय में चिन्तन करता है तो उसका अन्त:करण ही इसे उचित ठहराता है। हरिवाहन के द्वारा भेजे गए हार को पहनते ही इसे अपने पूर्वजन्म के पति ज्वलनप्रभ का स्मरण हो आता है। अत्यधिक व्याकुल होकर यह मलयसुन्दरी के साथ लेकर तीर्थयात्रा के बहाने से घर से निकल पड़ती है। जब एक महर्षि उसके पूर्वजन्म के विषय में बताते हुए कहते हैं कि हरिवाहन ही उसके पूर्वजन्म का पति ज्वलनप्रभ है तभी इसके हृदय की आकुलता कम होती है। 04 102. ति.म., पृ. 416-417 103. असंशयं क्षत्रपरिग्रहक्षमा यदार्थमस्यामभिलाषि मे मनः । सतां हि संदेहपदेषु वस्तुषु, प्रमाणमन्तः करणप्रवृत्तय ।। अभि. शा., 1/19 104. ति. म., पृ. 406-413
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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