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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य एलालतामण्डप में अपना परिचय देकर अत्यन्त शिष्टता से इसके तथा नगरी के विषय में पूछता है, तो वह लज्जा के कारण उसके प्रश्नों का उत्तर नहीं देती । " इसने लज्जा के विषय मे तो सभी स्त्रियों को पीछे छोड़ दिया है। एलालमण्डप में यह हरिवाहन पर मोहित तो हो जाती है, पर लाज के कारण इस विषय में वह किसी को कुछ भी नहीं बताती । जब इसे ज्ञात होता है, कि हरिवाहन मलयसुन्दरी के आश्रम में है, तो वह इससे मिलने आश्रम जाती है ।" पर वहाँ भी कोई बात नहीं करती । यह हरिवाहन को रथनूपुरचक्रवाल नगर चलने का निमंत्रण भी अपनी परिचारिका के माध्यम से देती है। इसकी प्रेमाभिव्यक्ति भी मलयसुन्दरी आदि सखियों के माध्यम से ही हुई है। 92 ललित कलाओं में पारंगत : तिलकमञ्जरी ललित कलाओं जैसे चित्रकला, नृत्यकला, गायन, वीणावादन, पुस्तककर्म, विदग्धजनों के मनोरंजन योग्य वस्तुविज्ञान आदि में निपुण थी। इसी कारण उसे सभी कलाओं में लब्धपताका कहा गया है।" मलयसुन्दरी तिलकमञ्जरी का हरिवाहन से परिचय करवाते हुए उसकी इन विशेषताओं का विशेष रूप से वर्णन करती है और उसे तिलकमञ्जरी के साथ इन विषयों पर चर्चा करने के लिए कहती है।” तिलकमञ्जरी को वीणावादन बहुत प्रिय है । हरिवाहन के वियोग से व्याकुल होकर वह कृत्रिमाद्रि के शिखर पर स्मायतन में देवपूजन के व्याज से रत्नवीणा बजाती थी । " तिलकमञ्जरी ने चित्रकला में भी प्रवीणता प्राप्त की थी । हरिवाहन के प्रत्यागम की प्रतीक्षा में वह उसका चित्र बनाकर समय व्यतीत करती थी । " 100 101 ति.म., पृ. 249-250 वही, पृ. 360-361 कृत्स्ने विद्याधरलोक इह लब्धपताका कलासु सकलास्वपि कौशलेन वत्सा। वही, पृ. 363 चित्रकर्मणि, वीणादिवाद्ये लास्यताण्डवगतेषु नाट्यप्रयोगेषु षड्जादिस्वरविभागनिर्णयेषु पुस्तककर्मणि द्रविड़ादिषु पत्रच्छेदभेदष्वन्येषु च विदग्धजनविनोदयोग्येषु वस्तुविज्ञानेषु पृच्छैनाम्। वही, पृ. 363 100. कदाचित्कृत्रिमाद्रिशिखरवर्तिनी स्मरायतने देवतार्चनव्यपदेशेन द्रुतगृहीतमुक्तग्राम रागामनुरागनिगडितगमनसिद्धाध्वन्यगणवितीर्णकर्णां रत्नवीणां वादयन्ती । वही, पृ. 391 101. कदाचिदन्तिकन्यस्तविविधवर्तिकासमुद्रा प्रगुणीकृत्य पृथुनि चित्रफलके निर्माणमालोच्यालोच्य मकरेतुबाणव्रातविद्धा देवस्यैव रूपं विद्धमभिलिखन्ति । वहीं, पृ. 391 96. 97. 98. 99.
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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