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________________ तिलकमञ्जरी के पात्रों का चारित्रिक सौन्दर्य यह अत्यधिक गुणी युवक है। इसने कुमारावस्था में ही शास्त्रों और कलाओं का अध्ययन कर लिया था। अपने पैतृक व्यवसाय में भी इसने दक्षता प्राप्त कर ली थी। इसके गुणों से आकृष्ट होकर सम्राट चन्द्रकेतु इसे नाविकों का सरदार नियुक्त करते हैं, तो यह शीघ्र ही अपने पद के अनुरूप नौ संचालन में प्रवीण हो जाता है।” इसकी योग्यता व स्वामिभक्ति के कारण ही इसे समरकेतु की विजययात्रा में समुद्रयात्रा के अवसर पर समरकेतु की नौका का कर्णधार बनया जाता है। यह अपने कर्तव्य पालन में सदैव सजग रहता है। अति कठिन परिस्थितियाँ भी इसे अपने कार्य से विचलित नहीं करती। समरकेतु के कहने पर यह समुद्र के अति दुर्गम मार्ग पर भी मांगलिक गीत ध्वनि के उद्गम स्थल को खोजने के लिए चल पड़ता है। अपने स्वामी समरकेतु को समुद्र में कूदता देखकर यह भी उसे पीछे ही समुद्र में कूद पड़ता है।" यह अत्यधिक बुद्धिमान भी है। जब समरकेतु मलयसुन्दरी को देखकर अपने हृदय से नियंत्रण खो बैठता है तो यह नौका के व्याज से मलयसुन्दरी को अपने स्वामी का प्रणय-निवेदन करता है। जब मलयसुन्दरी उसका प्रणय निवेदन स्वीकार करते हुए कहती है-अङ्गीकृतश्चार्य नायकः। किंतु तिष्ठतु तावद्यावदहमिहस्था। स्वस्थानमुपगता तु काञ्चीमध्यमागतं ग्रहीष्याम्येनम्। तब यह ही 'काञ्ची' शब्द से काञ्ची नगरी विषयक संकेत की ओर समरकेतु का ध्यान आकृष्ट करता है। यह एक आदर्श प्रेमी भी है। निम्नजाति की कन्या के प्रेमपाश में बंधकर उससे विवाह कर लेता है। अपने प्रकृष्ट प्रेम में यह अपने परिवार, अपने देश, यहाँ तक कि अपने पैतृक व्यवसाय को भी छोड़ देता है। यह निश्चय ही आदर्श प्रेमी है जो प्रेम के विषय में जाति भेद को भी गौण मानता है। इस प्रकार तारक एक बुद्धिमान, आत्मविश्वासी व स्वामिभक्त नवयुवक के रूप में हमारे सम्मुख उपस्थित होता है। 77. 78. 79. 80. 81. ति.म., पृ. 129-130 वही; पृ. 141-147 वही; पृ. 291-292 वही; पृ. 288 वही; पृ. 320-21
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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