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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
गन्धर्वक
यह चित्रलेखा का पुत्र है। यह चित्रकला में निपुण हैं। यही तिलकमञ्जरी का चित्र बनाकर तथा उसे हरिवाहन को दिखाकर उसके मन में तिलकमञ्जरी के प्रति अनुराग उत्पन्न करता है। इसका बनाया गया त्रुटि रहित चित्र इसके चित्रकला कौशल को प्रदर्शित करता है। हरिवाहन भी इसके चित्रकला कौशल की प्रशंसा करता है।
पन्द्रह वर्षीय यह तरुण शील, सदाचार व दयालुता आदि गुणों से भरपूर है। तरङ्गलेखा के करुण आक्रन्दन को सुनकर सहायता करने के लिए उसके पास जाता है और मलयसुन्दरी के विष-विकार को दूर करने के लिए औषधि खोजने का पूरा प्रयत्न करता है।
यह बुद्धिमान भी है। हरिवाहन को देखकर व उसका परिचय पाकर यह सब प्रकार से उसे ही तिलकमञ्जरी के योग्य मानता है। यह हरिवाहन और तिलकमञ्जरी को मिलाने का पूरा प्रयत्न करता है। चित्रमाय को भी यह आज्ञा देता है कि मेरे शीघ्र वापस न आने पर तुम किसी भी प्रकार हरिवाहन को रथनूपुरचक्रवालनगर ले जाना। अन्त में यही हरिवाहन को तिलकमञ्जरी से मिलाता है। इस प्रकार यह अपनी स्वामिभक्ति का आदर्श प्रस्तुत करता है।
ज्वलनप्रभ
ज्वनलप्रभ एक दिव्य वैमानिक है। पुण्य क्षीण होने पर यह धार्मिक कार्यों के द्वारा अपना दूसरा जन्म सुधारने के लिए स्वर्गलोक से निकल पड़ता है। यह रतिविशाला नगरी में जाकर अपने मित्र सुमाली को भी शुभ कर्मों में प्रवृत करता है। इसे अपनी पत्नी प्रियङ्गसुन्दरी से अगाध प्रेम है। शक्रावतार नाम जिनायतन आदि के दर्शन करके लौटते समय यह सम्राट मेघवाहन से मिलता है। वहाँ यह
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ति.म., पृ. 170 वही; 166 वही; पृ. 380 वही; पृ. 164 वही; पृ. 380