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________________ 85 तिलकमञ्जरी के पात्रों का चारित्रिक सौन्दर्य धनुर्विद्या कौशल का ज्ञान उस समय होता है जब इसका समरकेतु के साथ बाण युद्ध होता है। समरकेतु भी इसके धनुर्विद्या कौशल की प्रशंसा करता है। ___ यह आदर्श योद्धा है। वीरों के लिए इसके हृदय में सम्मान जनक स्थान है। युद्ध भूमि में शत्रुसेना नायक समरकेतु के अद्वितीय पराक्रम को देखकर उसका प्रशंसक हो जाता है तथा समस्त वीरोचित गुणों से युक्त स्वयं से अधिक पराक्रमी समरकेतु को उसके समक्ष बद्धांजलि होकर, बड़ी नम्रता से सम्राट मेघवाहन की सेना का सेनापति पद स्वीकार करने की प्रार्थना करता है। यह सम्राट मेघवाहन के प्रति इसकी सच्ची निष्ठा व स्वामिभक्ति की पराकाष्ठा है। वीर होने के साथ-साथ यह सहृदय भी है। दिव्य अंगुलीयक के प्रभाव से समरकेत के मच्छित होने पर यह अपनी सेना से इसकी रक्षा करता है। शत्रु सेना के घायल सैनिकों के उपचार का आदेश देता है। समरकेतु के व्रणों का उपचार तो यह परिचायक के समान स्वयं अपने हाथों से करता हैं। इस प्रकार यह सच्चा वीर, आदर्श योद्धा तथा आदर्श स्वामिभक्त है। कुसुमशेखर कुसुमशेखर सम्पूर्ण दक्षिणापथ के अधिपति है। इनकी राजधानी काञ्ची नगरी है। यह गन्धर्वदत्ता के पति तथा मलयसुन्दरी के पिता है।" यह यशस्वी, वीर ओर नीतिनिपुण हैं। वज्रायुध की अपेक्षा कम सैन्य शक्ति होने पर भी बड़े धैर्य से काम 63. 64. ति.म., पृ. 89 वज्रायुध ! तवानेन सकललोकविस्मयकारिणा भुजबलेन धनुरिवावजितं मम निसर्गस्तब्धमपि हृदयम्, आशैशवादपरपौरुषमदोन्मादपरवस्य मे शतशः संगरेषु संवृत्तः प्रवेशः जातश्च सहस्रसंख्यैर्धन्विभिः सह समागमः, न तु जनितमेवंविधं केनाप्यपरेण कौतुकम् । वही; पृ. 90 उपजातविस्मयश्च निश्चलस्निग्धतारकेण चक्षुषा सुचिरमवलोक्य तदवलोकनप्रीतमनसा समीपवर्तिना सामन्तलोकेन सह बहुप्रकारमारब्धतद्वीर्यगुणस्तुतिस्तस्मिन्नेव प्रदेशे मुहुर्तमात्रमतिष्ठत्। ति.म., पृ. 94 यद्यनुग्रहबुद्धिरस्मासु तदेतदङ्गीकुरु सततमादेशकारिणा समीपदेशस्थितेन मया प्रतिपन्नसकलपृथ्वी- व्यापारभारनिराकुलो मदीयमाधिपत्यपदम्। वही; पृ. 98 वही; पृ. 93 आदिश्य चायुधप्रहारक्षतमर्मणामरातियोधानामौषधकर्मण्याप्तजनम् ...। वहीं, पृ. 97 अधिशयिततल्पस्य च परिचारक इव स्वयं व्रणपट्टबन्धनादि क्रियामन्वतिष्ठत्। वही, पृ. 97 वही; पृ. 343 वही; पृ. 262-63 69. 70. 71.
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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