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________________ 84 तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य हैं। विद्याधर मुनि के कहने पर देवी लक्ष्मी की पूर्ण श्रद्धा व भक्ति से प्रतिदिन विधिपूर्वक उपासना करते हैं।” यह ऋषि-मुनियों को पूर्ण आदर व सम्मान देते हैं। विद्याधर मुनि को आकाश मार्ग से आते देखकर उनके प्रति श्रद्धा से युक्त होकर उठकर खड़े हो जाते हैं और पास आने पर उनका यथोचित सत्कार करते है। शक्रावतार नामक जैन मंदिर में भी दिव्य वैमानिक को देखकर आगे बढ़कर उनका स्वागत करते संक्षेप में कहा जा सकता है कि सम्राट् मेघवाहन का एक आदर्श राजा थे। उन्हें प्रजा भी उतना ही चाहती थी जितना यह अपनी प्रजा से प्रेम करते थे। वज्रायुध यह कौशलधिपति सम्राट् मेघवाहन की चतुरङ्गिणि सेना का सेनानायक है। यह अत्यन्त वीर, निडर व पराक्रमी है। अपने पराक्रम से यह शत्रु सेनाओं को भयभीत कर देता है। सम्राट् मेघवाहन इसे दक्षिणापथ के सामन्तों को विजय करने के लिए भेजते हैं। यह दक्षिण दिशा के जनपदों पर कौशल नरेश की विजय पताका फहराते हुए अपने विजय रथ को आगे बढ़ाते हुए, काञ्ची नरेश को विजय का पाठ पढ़ाने के लिए काञ्ची नगरी पहुंचता है। युद्ध का इसे व्यसन सा है। निरन्तर अनेक युद्ध करने पर भी इसे विश्रान्ति का अनुभव नहीं होता। युद्धनाद इसे कर्णामृत के समान लगता है।' काञ्ची में जब काचरक और काण्डरात नामक अश्वारोही आकर सूचित करते हैं कि शत्रु सेना आक्रमण करने के लिए आ रही है, तो यह अत्यधिक प्रसन्न हो जाता है तथा उत्साहित होकर रणभेरी बजाने का आदेश दे देता है। यह अनुपम योद्धा होने के साथ-साथ श्रेष्ठ धनुर्धर भी है। इसके 56. 57. 58. 59. ति.म., पृ. 29 वही, पृ. 25 वही, पृ. 38 वही; पृ. 81 ससंभ्रममवनताश्चार्चन्ति देवस्य चरणनखचिन्तामणिपरंपरापुर:प्रकीर्णचूड़ामणिकिरणचक्रवालबालपल्लवैर्मूर्द्धनि मूर्धाभिषिक्तपार्थिवकुलोद्भवाभवदत्तभीमभानुवेगप्रभृतयः सपरिजना : राजानः। वही; पृ. 81 सेनापतिस्तु तत्तयोराकर्ण्य कर्णामृतकल्पम् ..... । वही, पृ. 86 वही; पृ. 85-86 62.
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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