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तिलकमञ्जरी के पात्रों का चारित्रिक सौन्दर्य करके कहते हैं कि मेरा यह शरीर, धन अथवा राज्य जो कुछ भी आपके अथवा अन्य के प्रयोजन के लिए उपयोगी हो, उसे स्वीकार करें।" ।
यह अत्यन्त निडर और वीर भी है। भय नामक शब्द तो इनके शब्दकोश में ही नहीं है। वेताल की भीषण आकृति को देखकर और उसके भयङ्कर अट्टहास को सुनकर भी इन्हें किञ्चित भी भय का अनुभव नहीं होता, अपितु वेताल की विचित्र आकृति को देखकर वे हँस देते हैं। गुणग्राही : यह गुणी व्यक्ति का सम्मान करते हैं, चाहे वह शत्रु ही क्यों न हो। समरकेतु की वीरता व युद्ध कौशल के विषय में सुनकर आश्चर्यचकित हो जाते है। उसे प्रतिहारी के द्वारा आदरपूर्वक बुलाकर पुत्रवत् स्नेह देते है तथा हरिवाहन का प्रमुख सहचर बना देते है।" पुत्र स्नेह : अपने पुत्र हरिवाहन के लिए इनके हृदय में अगाध प्रेम है। बहुत से दुःख सहने और अनेक प्रार्थनाओं के पश्चात् ही मेघवाहन ने देवी लक्ष्मी से वरदान में हरिवाहन को पुत्र रूप में प्राप्त किया। पुत्र पर अत्यधिक स्नेह होने के कारण यह मास पर्यन्त प्रतिदिन इसका जन्मोत्सव मनाते हैं। हरिवाहन को आदर्श राजा के गुणों से युक्त करने के लिए उचित समय पर एक विद्यागृह का निर्माण करवाकर उसकी उत्तम शिक्षा का प्रबन्ध करते है। धर्मनिष्ठ : यह धर्मपारायण हैं। यौवनावस्था का अत्यधिक समय व्यतीत हो जाने पर भी सन्तान प्राप्ति न होने पर वन में जाकर देवोपासना करने का निश्चय करते
51. इदं राज्यम्, एषा में पृथिवी, एतानि वसुनि, असौ हस्त्यश्वरथपदातिप्रायोबाह्यः परिच्छदः,
इदं शरीरं एतद्गृहं गृह्यतां स्वार्थसिद्धये परार्थसंपादनाय वा यदत्रोपयोगार्हम्। ति.म., पृ. 26 52. ते च क्रमानुसारिण्या दृशा चरणयुगलादामस्तकं प्रत्यवयवमलोक्य किंचित्कृतस्मितो
नरपतिरुवाच- महात्मन् अनेन ते .... प्रकरितभुवनत्रयत्रासकारिणा
हर्षाट्टहासेनजनितमतिमहकुतूहलं मे। वही, पृ. 49 53. वही, पृ. 88-99 54. वही, पृ. 102 55. अवतीर्णे च षष्ठे किंचिदुपजातदेहसौष्ठवस्य व्यक्तवर्णवचनप्रवृत्तेर्विनयारोपणाय राजा
राजकुलाभ्यन्तर एव कारितानवद्यविद्यागृहः समयगावेशितगुरुकुलानामवगताखिलशास्त्र मर्मनिर्मलोक्तियुक्तीनामाम्नायलब्धजन्मनामसन्मार्गगतिनिसर्गविद्विषां विद्यागुरूणामहरहः संग्रहमकरोत्। वही, पृ. 78-79