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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य मेघवाहन मेघवाहन, चक्रवर्ती सम्राट व हरिवाहन के जनक है। इसकी राजधानी अयोध्या स्वर्ग से भी सुन्दर है। सम्राट् मेघवाहन सभी स्पृहणीय गुणों से युक्त है। यह बलशाली, पराक्रमी तथा दानवीर है। राजलक्ष्मी सदैव इसके वश में रहती है। इनके पराक्रम व दयादाक्षिण्यादि का वर्णन देवराज इन्द्र की सभा में भी बड़े आदर के साथ होता है। पराक्रमी : यह अत्यधिक पराक्रमी है। बाल्यवस्था में ही इसका राज्याभिषेक हो गया था। बाल्यकाल में ही इसने अपने बाहुबल से सातों समुद्र पर्यन्त पृथ्वी को जीतकर अपने अधीन कर लिया था। यह इतने पराक्रमी हैं कि इससे शत्रुता के परिणाम को देखकर शत्रुओं ने अपने अस्त्रों को भी छोड़ दिया। प्रजावत्सल : यह अपनी प्रजा के सुख दुःख को जानने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। अपनी प्रजा के विचारों को जानने के लिए यह वेष बदलकर नगरी में घूमते है।” प्रजा की प्रसन्नता के लिए विशेष उत्सवों में भी भाग लेते है। अपनी अच्छी व्यवस्था और नीतियों से इसने सब ओर शान्ति का साम्राज्य स्थापित कर दिया था। इसके राज्य में प्रजाजन सुखी और खुशहाल थे। दानवीर और निडर : यह याचकों को निराशा नहीं करते। जीवन का संकट उत्पन्न होने पर भी इन्होंने कभी किसी याचक को निराश नहीं किया। यह अत्यन्त निडर और वीर है। वेताल के याचना करने पर यह अपना शीश भी दान करने को उद्धत हो जाते है और तलवार से अपनी ग्रीवा काटने भी लगते हैं।” इन्होंने जीवन में कभी किसी के समक्ष हाथों को नहीं फैलाया। इनके हाथ सदैव दान करने के लिए ही तत्पर रहते हैं। इसीलिए ज्वलनप्रभ को भी अपना दिव्य हार इन्हें देने के लिए प्रार्थना करनी पड़ती है। विद्याधर मुनि के दर्शन करके व उनका सत्कार
46. दृष्ट्वा वैरस्य वैरस्यमुज्झितास्त्रों रिपुव्रजः ।
यस्मिन्विश्वस्य विश्वस्य कुलस्य कुशलं व्यधात् ।। ति.म., पृ. 16 निसर्गत एवास्य पूर्वपार्थिवातिशायिनी प्रजासु पक्षपातस्य परवशा वृतिरासीत। यतः स ..... तासां प्रजानां सुस्थासुस्थोपलम्भाय केनाप्यनुपलक्ष्यमाणविग्रहः कुसुमायुध इवायुध
द्वितीयः स्वयमेव निर्गत्य निशामुखेषु प्रतिगृहं नगर्यां बभ्राम। वही, पृ. 19 __ पौरलोकपरितोषहेतोश्च वसन्तादिषु सविशेषप्रवृत्तोवसवां निर्गत्य नगरीमपश्यत्। वही; पृ. 19 49. वही, पृ. 51-53 50. वही, पृ. 43-45