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तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य
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आदर्श प्रेमी : यह एक आदर्श प्रेमी भी है । यह सागरान्तर द्वीप - विजय प्रसङ्ग में यात्रा करते हुए पञ्चशैल द्वीपवर्ती जिन मंदिर की दीवार पर खड़ी षोडश वर्षीय राजकुमारी मलयसुन्दरी को देखकर प्रेमासक्त हो जाता है और तारक के माध्यम से मलयसुन्दरी को अपना प्रणय निवेदन स्वीकार करने को कहता है। यह मलयसुन्दरी के लिए इतना व्याकुल हो जाता है कि उसके अकस्मात् अदृश्य हो जाने पर अपने प्राणान्त के लिए समुद्र में कूद पड़ता है।" प्रिया से दूरी भी इसके प्रेम को कम नहीं करती। काञ्ची में कामदेव के मंदिर में पुन: भेंट होने पर यह जानकर इसका प्रेम द्विगुणित हो जाता है कि मलयसुन्दरी भी उसी कामबाण से पीड़ित है, जिसका स्वयं यह भी शिकार है।
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जब इसे यह ज्ञात होता है कि युद्ध को रोकने के लिए तथा शत्रु से संधि करने के लिए मलयसुन्दरी का विवाह वज्रायुध से किया जाएगा से यह अपने प्रेम की रक्षा के लिए रात्रि मे ही वज्रायुध पर आक्रमण कर देता है।”
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आज्ञाकारी पुत्र : यह अपने पिता का आज्ञाकारी पुत्र है। अपने पिता की आज्ञा का पालने करने के लिए यह अविनीत सामन्तों से युद्ध करने के लिए समुद्रीय द्वीपों की यात्रा करता है और उन्हे विनय का पाठ पढ़ाता है। अपने पिता की आज्ञा मिलने पर यह युद्ध में काञ्ची नरेश की सहायता करने के लिए काञ्ची नगर जाता है” और अपने पराक्रम से वज्रायुध के दर्प को खण्डित कर देता है। विनम्र और नीतिवान : यह अत्याधिक विनम्र और नीतिवान है। यह अपने गुरुजनों का आदर करता है और उन्हें विशेष सम्मान देता है। वज्रायुध जैसे पराक्रमी योद्धा के नतमस्तक हो जाने पर भी इसे अपनी शक्ति का अभिमान नहीं होता । मेधवाहन के दर्शन करने पर श्रद्धापूर्वक उनके चरणों में नमस्कार करता है ।" यह मदिरावती को अपनी माता के समान आदर देता है।
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ति.म., पृ. 281-286
वही, पृ. 291
वही, पृ. 86-90
वही, पृ. 114
सकलसागरान्तरालद्वीपविजिगीषया गतोऽपि दुरमतिसत्वरः पितुराज्ञया राज्ञेऽस्य कर्तुमासन्नवर्तिभिः कतिपयैरेव नृपतिभिरनुप्रयातः
कुसुमशेखरस्य साहायकं काञ्चीमनुप्राप्तः । वही, पृ. 95
वही, पृ. 101