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________________ तिलकमञ्जरी के पात्रों का चारित्रिक सौन्दर्य उत्पन्न मूर्छा समाप्त होने पर जब वह स्वयं को शत्रुओं से घिरा पाता है, तो लज्जा व ग्लानि से पुनः मूर्छित हो जाता है। इसके लिए पराजय मृत्यु से बढ़कर है। इसी कारण व्रजायुध भी इसकी वीरता का सम्मान करते हुए, इसके पराजय के विषाद को दूर करने के लिए कहता है कि मैं आपके पराक्रम से पराजित हो चुका हूँ। इस जगत् में कोई भी आपको पराजित नहीं कर सकता। आपकी पराजय का कारण मैं नहीं, अपितु दिव्य अंगुलीयक हैं जिसके प्रभाव से आप मूर्छित हो गए। मैं समझता हूँ कि जिसके शौर्य के समक्ष शत्रु भी नतमस्तक हो जाए, उससे अधिक पराक्रमी कोई नहीं हो सकता। आत्मविश्वासी : यह आत्मविश्वास से भरपूर तरुण है। इसे अपने कार्यों में सफलता का पूरा विश्वास है। पिता से दक्षिणापथ के दुष्ट सामंतों का दमन करने की आज्ञा प्राप्त करने पर यह पूर्ण उत्साह और विश्वास के साथ दक्षिणापथ की ओर कच करता है। तथा शत्रुओं का दमन करता है। यह व्रजायुध पर भी विजय प्राप्त करने के पूर्ण विश्वास के साथ इस प्रकार से आक्रमण करता है कि व्रजायुध का युद्ध-विजय-दर्प खण्डित हो जाता है। जब मदान्ध गज हरिवाहन का अपहरण कर लेता है, तो यह इसकी खोज में अकेला ही निकल पड़ता है और उसे खोजकर ही दम लेता है। सच्चा सुहृत् : यह एक सच्चा सुहृत् है। जब सम्राट् मेघवाहन इसे हरिवाहन का परम विश्वसनीय सहचर बनाते है तो यह भी उसी क्षण से हरिवाहन को अपना परम मित्र मान लेता है और उससे सहोदर के समान व्यवहार करता है। हरिवाहन के वियोग में यह उसे खोजने के लिए आकाश पाताल एक कर देता है। छ: माह तक दुर्गम वनों व पर्वतों पर अनेक कष्टों व शीतोष्णादि द्वन्द्वों को सहकर उसको खोजता है। इस बीच यह अपनी प्रेमिका मलयसुन्दरी को भी याद नहीं करता। निस्संदेह इसका यह मित्र प्रेम अनुपम है जो इसे विशिष्ट मित्रों की श्रेणी में भी उत्युच्च पद पर प्रतिष्ठित करता है। 32. अवलोक्य च पुरः परिवेष्टितरथमरातिलोकमात्मानं च तदवस्थमुपजातगुरुविषादो लज्जया पुनर्मोहान्धकारमविक्षत्। ति.म., पृ. 96 33. वही; , पृ. 97-98 34. वही; पृ. 133-134
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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