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________________ तिलकमञ्जरी के पात्रों का चारित्रिक सौन्दर्य अन्य देश के यात्री के समान दुरवस्था को प्राप्त हुआ हूँ। अब न वह राज्य है, न वे राजा हैं, न हजारों मदान्ध गज समुहों से पूर्ण वह शिविर है, न वे छत्रचामर आदि राजाओं के आभूषण हैं, न वे कर्णप्रिय बन्दिजनों के स्तुति वचन है। सब कुछ स्वप्नकालिक दृश्यों (मिथक) के समान हो गया है। ...सम्पूर्ण संसार ऐसा ही है (अर्थात् दुःख से परिपूर्ण है) आश्चर्य है कि इस जगत् की इस प्रकार की अवस्थाओं (दुःखसे युक्त) का अनुभव करते हुए भी जीवों को चित्त विरक्त नहीं होता, उनकी विषयासक्ति निवृत्त नहीं होती, विषय भोग की इच्छा नष्ट नही होती। इसकी चिंतनशीलता का एक और उदाहरण द्रष्टव्य है। जब यह तिलकमञ्जरी के चित्र को देखकर उससे विवाह करने के लिए आतुर हो जाता है पर बाद में अपने चित्त को स्थिर करके सोचता है कि - कहाँ मैं अयोध्या नगरी में रहने वाला भूतलवासी और कहाँ देवो के निवास योग्य पर्वत पर स्थित रथनूपुरचक्रवाल नामक विद्याधर नगरी की राजकुमारी?दोनों में अत्यधिक अन्तर है। अपनी मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए, मन को अपथ पर नहीं जाने देना चाहिए, इन्द्रियों को मुख्यतया नहीं देनी चाहिए।" ये दोनों उदाहरण इसकी गहन चिन्तनशीलता के परिचायक हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि हरिवाहन वीरता, धैर्य, सदाचार, आज्ञाकारिता, प्रेम, दया, परोपकारिता आदि स्पृहणीय गुणों का निवास स्थान है। 25. अहो विरसता संसारस्थिते :, अहोविचित्रता कर्मपरिणतीनाम्, अहो यदृच्छाकारितायामभिनिवेशो विधिः, अहो भङ्करस्वभावता विभवानाम्। ........स मदान्धगजघटासहस्रसंकुलः स्कन्धावारः, नते छत्रचामरादयो नरेन्द्रालंकाराः, न तानि श्रवणहारीणि चारणस्तुतिवचनानि। सर्वमेव स्वप्नविज्ञानोपमं संपन्नम्। ....... सर्व एवायमेवंप्रकारः संसारः। इदं तु चित्रं यदीदृशमप्येनमवगच्छतामीदृशीमपि भावनामनित्यतां विभावयतामीदृशानपि दशाविशेषाननुभवतां न जातुचिज्जन्तूनां विरज्यते चित्तम्, न विशीर्यते विषयाभिलाषः, न भङ्गरीभवति भोगवाञ्छा, ...। ति. म., पृ. 244 क्वाऽहं क्व सा ?क्व भूमिगोचरस्य निकेतनं साकेतनगरं क्व दिव्यसङ्गसमुचिताचलप्रस्थसंस्थं रथनूपुरचक्रवालम् ?अपि चविवेकिना विचारणीयं वस्तुतत्त्वम्, नोज्झितव्यो निजावष्टम्भः, स्तम्भनीयं मनः प्रसरदपथे, न देयमग्रणीत्वमिन्द्रियगणस्य। वही, पृ. 176 6
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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