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________________ तिलकमञ्जरी में काव्य सौन्दर्य इसके विवाह प्रस्ताव को अस्वीकृत कर देती है, तो यह आत्मघात करने चल पड़ता है | 24 76 आज्ञाकारी पुत्र : हरिवाहन शिष्ट और आज्ञाकारी पुत्र है। वह अपने माता-1 -पिता को सर्वोपरि मानता है। जब मेघवाहन समरकेतु के गुणों पर प्रसन्न होकर उसे हरिवाहन का सदा साथ रहने वाला मित्र ( सहचर) बना देते हैं तो हरिवाहन भी उसे परम मित्र का ही सम्मान देता है। साम्राज्य निरीक्षण के बहाने घूमने जाने के लिए भी हरिवाहन अपने पिता से आज्ञा प्राप्त करता है। धार्मिक : यह ईश वन्दना में भी विश्वास करता है। इसी कारण जब अनंगरति उसे देवी के मन्त्र को साधने के लिए कहता है, तो यह पूर्ण श्रद्धा से छ: माह तक तप करके देवी को प्रसन्न करता है। कठिन परिस्थितियों में भी वह निराश नहीं होता और भगवान को दोष नहीं देता । अदृष्टपार सरोवर के निकट जिनायतन में भी यह श्रद्धापूर्वक नमस्कार करता है। धीर, गम्भीर और चिन्तनशील : यह अत्यधिक वीर और धैर्यवान है। यह एकाग्रचित रहता है। वरियमदण्ड नाम हस्ती जब इसे लेकर आकाश में उड़ जाता है तो वह परेशान नहीं होता, और इस आपत्ति से निकलने का उपाय सोचता है। अदृष्टपार सरोवर में डूबने पर भी वह धैर्य के दामन को नहीं छोड़ता और तैरकर किनारे पर आ जाता हैं । अपरिचित प्रदेश के विचरण करते हुए भी यह वहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य को ही निहारता है । यह इतना वीर है कि अपने मित्र समरकेतु की खोज में जंगलों में निकल जाता है और आकाश पाताल एक कर देता है। सभी शास्त्रों में पारङ्गत होने के कारण इसमें किसी भी परिस्थिति का विश्लेषण करने की अद्भुत क्षमता है। कठिन परिस्थितियों का यह गंभीरता से अनुशीलन करता है। अदृष्टपार सरोवर से बाहर आकर यह जिस प्रकार से इस जगत् की क्षण-भरता के विषय में सोचता है, वह निश्चय ही विचारणीय है अहो! इस सांसारिक स्थिति की अतात्त्विकता, अहो ! कर्म वैदग्ध्यों (परिपक्वों) की विचित्रता, अहो ! धनसंपदाओं की क्षणभङ्करता। आज ही मैं सौन्दर्य और सम्पत्ति में इन्द्र के विमान को तिरस्कृत करने वाले अपने गृह में मित्रों सहित वीणावादनादि क्रीड़ा से उत्पन्न आनन्द का आस्वादन कर रहा था और आज ही मैं दुर्गम पर्वत के वन के मध्य सैकड़ों जंगली जानवरों से घिरा हुआ, 24.ति.म., पृ. 397
SR No.022664
Book TitleTilakmanjari Me Kavya Saundarya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Garg
PublisherBharatiya Vidya Prakashan2017
Publication Year2004
Total Pages272
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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