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________________ ली। इस प्रकार उत्तमकुमार ने अपना मानवजीवन सफल कर दिया । महात्मा उत्तमकुमार राजर्षि चारित्र रत्न का पालन करते हुए यथार्थ ज्ञान को उपार्जन कर अखण्ड शान्ति का अनुभव करने लगा । मन को शुद्ध करके, कभी नाश न होनेवाली परम तृप्ति को खोजने लगे - “जीवन किस प्रकार सार्थक किया जाय ? समय का सदुपयोग न करने से कैसी-कैसी भयङ्कर तकलीफें होती हैं ? | शुद्ध विचार रखना प्रत्येक सांसारिक मनुष्य के लिए अनिवार्य बात है । आलस्य प्रमाद से होने वाली हानियाँ, विषयलोलुपता सभी के लिए त्याज्य है। भावशौच, शुभध्यान और संयम सभी के लिए सेवन करने योग्य हैं । कर्तव्य तथा प्राप्तव्य का स्वरूप इत्यादि उत्तम विषयों पर वह राजर्षि व्याख्यान | देकर लोकोपकार करने लगे। इस प्रकार अपना शेष जीवन सार्थक करके राजर्षि उत्तमकुमार चारित्र | पालते हुए तपश्चर्या द्वारा कर्मों को क्षय कर, अन्त में अनशन व्रत ले स्वर्ग को सिधारें । वहाँ पर दैवी सुख भोगकर बाद में महा विदेह क्षेत्र में आकर फिर सिद्ध पद को प्राप्त करेंगे। | जिन्होंने आहेत तत्त्व ज्ञान श्रवण कर संसार में रहते हुए भी अपने जीवन का महत्वपूर्ण भाग लोकोपकारी बनाया है, जिसने अपनी महान सम्पत्ति का सात क्षेत्रों में सदुपयोग किया है और जिसने कर्तव्य, ज्ञातव्य और प्राप्तव्य की अवधि को देखा है, ऐसे पूर्व कालीन तथा वर्तमान समय के जैन | तत्त्वज्ञ महात्माओं ने, और धर्मवीर पुरुषों ने अन्त में इसी पवित्र मार्ग का अनुसरण किया है। 105
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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