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________________ उपसंहार प्रिय वाचक वृन्द ! आपने एक धर्मवीर महात्मा का यह जीवन चरित्र आदि से अन्त तक पढ़ा है।महाशय उत्तमकुमार की पुण्य महिमा आपकी दृष्टि के आगे आयी है। इस पर से आप दूरदर्शिता पूर्वक अपने आत्मा को देखना । कोई भी किया हुआ सत्कर्म कभी भी निष्फल नहीं होता । ठण्ड से ठिठुरे हुए मुनियों को पूर्व जन्म में वस्त्र दान करने वाले उत्तमकुमार ने कितना ऐश्वर्य प्राप्त किया ? इस पर जरा मनन करना । आपको इससे निश्चय होगा कि - "किसी भी सुपात्र को आश्रय देने से दुःखी मनुष्य और प्राणी को दुःख से मुक्त करने से कितनी पुण्य लक्ष्मी प्राप्त की जा सकती है ? यदि यह दृढ़ निश्चय, आपके मन में हमेशा के लिए हो गया तो आपकी परोपकार वृत्ति को सदा पुष्टि ही मिलती रहेगी । यह वृत्ति आपको उन्नति की ओर ले जायगी । इसे प्राप्त करने की पूर्ण अभिलाषा आपके हृदय में पहिले से उत्पन्न होनी चाहिए। आप यह जानते हैं कि जब तक किसी वस्तु को पाने की तीव्र इच्छा मनुष्य के हृदय में नहीं होती तब तक उस वस्तु को पाने के लिए जितना प्रयत्न होना चाहिए उतना प्रयत्न उससे नहीं होता है । इसलिए, आप में तन, मन और धन से परोपकार करने की प्रवृत्ति हो, ऐसी तीव्र धारणा आपको रखनी चाहिए । | ऐसे धर्मवीर तथा परोपकारी धर्मवीर पुरुषों के चरित्र भी वैसी ही पवित्र वृत्ति का | बोध कराने में पूर्ण साधन रूप होते हैं। । इस बोध-प्रद चरित्र के पात्रों के जीवन से आपको अलग-अगल शिक्षा लेना चाहिए । इस कथा के नायक उत्तमकुमार का साहस सबसे अधिक प्रशंसनीय है । यदि उसने विदेश-भ्रमण करके अपने दिव्य गुणों को प्रकट नहीं किये होते तो उसका उन्नतावस्था को पहुँचना सर्वथा असंभव था । कूएँ के मेढ़क की तरह अपनी भूमि में पड़े रहनेवाले आलसी पुरुषों को उत्तमकुमार के साहस का अनुकरण कर अपने गुणों को प्रकाशित करने की उत्तम शिक्षा लेनी चाहिए ।। इसके अतिरिक्त मदालसा, तिलोत्तमा और सहस्त्रकला आदि मुख्य नारी-पात्रों ने जो अपने गुण प्रकट किये हैं, वैसे गुणों की प्राप्ति के लिए प्रत्येक श्राविका 106
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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