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________________ “हिमालय पर्वत की भूमि के विशाल प्रदेश में सुदत्त नामक एक सुन्दर गाँव है। उसमें धनधान्य से परिपूर्ण धनदत्त नामक बड़ा ही सम्पत्ति शाली गृहस्थ रहता था। उसके चार स्त्रियाँ थीं । उसने आरम्भ कर बहुत ही धन संचय किया किन्तु बाद में दैव योग से उसका सारा धन नाश हो गया । उसके ऐश्वर्य सम्पन्न घर में दरिद्रनारायण का वास हो गया । एक दिन ठण्ड के मौसिम में कोई चार मुनि शीत से काँपते हुए उसके घर आ पहुंचे । उन मुनियों को ठण्ड से काँपतेठिठुरते देखकर उसने पूछा - "मुनिराज ! आपके शरीर के वस्त्र कहां गये ?" मुनियों ने कहा – “विहार करते हुए आते समय मार्ग में हमें चोरों ने लूट लिया हैं।" | यह सुनकर धनदत्त के मन में बड़ी ही भावदया उत्पन्न हुई और स्वयं निर्धन होते हुए भी | उसने अपने ओढ़ने के वस्त्र उन मुनियों को दे दिये । उस समय उसकी चार स्त्रियों ने उसे ऐसा करने की अनुमति दी थी। इस महापुण्य के फल से वह धनदत्त इस जन्म में उत्तमकुमार बना है और उन चार मुनियों को वस्त्र दान देने के कारण तुम्हें चार राज्यों की महान् सत्ता प्राप्त हुई है और साथ ही पाँच रत्न एवं बहुत सी धन सम्पत्ति प्राप्त हुई है। यह चार चतुर स्त्रियाँ भी तुम्हें उसी पुण्य के प्रभाव से प्राप्त हुई हैं। पहिले तुम्हें कभी किसी जन्म में मुनि के शरीर तथा वेष को देखकर ग्लानि पैदा हुई थी। उसी के फल स्वरूप तुम्हें मगर के पेट में तथा मछुओं के घर रहना पड़ा।आज से हजार जन्म पूर्व तुमने एक तोता पिंजरे में बन्द किया था, इसीलिए तुम्हें वेश्या के यहाँ तोता बनकर पींजरे में रहना पड़ा । अनंगसेना पूर्व जन्म में कुलीन स्त्री थी, उसकी एक प्यारी सखी शृङ्गार करके उसके घर आयी थी, उस समय उसने हँसी-मजाक में यह कह दिया था कि "आओ वेश्या बहिन" केवल इतना कहने से ही उसे अनंगसेना नामक वेश्या के रूप में जन्म लेना पड़ा है ।"| केवली भगवान के मुँह से इस प्रकार अपना पूर्व वृतान्त सुनकर महाराज उत्तमकुमार तथा उसकी रानियों के हृदय में वैराग्य भावना उत्पन्न हो गयी । उसने उसी समय अपने समस्त राज वैभव की व्यवस्था कर संसार का त्याग करके अपनी चारों पत्नियों सहित केवली भगवान से दीक्षा ग्रहण कर 104
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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