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________________ होने के बाद उसने अनेक जैन-मन्दिर जगह-जगह बनवाये । अनेक तीर्थ | यात्राएँ की। प्रजा के कर माफ कर दिये । सज्जनों का पोषण किया।जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई । पुस्तकालयों की स्थापना की, धार्मिक-सम्मेलन किये और विविधपरोपकार कार्य किये । भरतक्षेत्र के महान् कवि लोग उत्तमकुमार के सद्गुणों का इस प्रकार वर्णन करते हैं - चार राज्य-स्वामी हुए, उत्तम चरित नरिन्द । पूर्व पुण्य के उदय से, दिन दिन अधिकानंद ॥ चार अप्सरा तुल्य थीं, चारों चतुर सुजान । चारों नारि पतिव्रता, चारों मानें आन ॥ चालिस लख घोड़े जहाँ, इतने ही गज मौर । चालिस लख रथ हैं सजे, पैदल चार करोड ॥ चालिस कोटि ग्रामाधिपति, ऋद्धी का नहिं पार । चार राज्य भोगे सदा, दिन-दिन हो विस्तार ॥ जिनमन्दिर बनवाये बहु, कीन्हीं तीरथ जात्र । भार रूप कर, करि क्षमा, पोषण किये सुपात्र । जिन प्रतिमाएं स्थापित कर, पुस्तक भरे भंडार । धार्मिक वत्सल वह हुआ, कीन्हें पर उपकार । उन दिनों इस कविता से उत्तमकुमार का यशोगान भरत के चारों कोनों में होता था । भरतक्षेत्र की आर्यप्रजा इस धर्मवीर के पवित्र चरित्र को श्रवण कर उसके पुण्य की भूरि-भूरि प्रशंसा करती थी । उत्तमकुमार जिन धर्म का, परम | प्रभावक बन कर आर्हत धर्म का प्रचार करने के लिए, तन, मन और धन से, प्रयत्न करता था। उसकी समस्त समृद्धि सातों क्षेत्र में लग कर उपयुक्त हो रही थी। नीति परायण उत्तमकुमार के जीवन का अनुकरण करने कि लिए भरतक्षेत्र के समस्त राजा लालायित रहते थे । ऐसा पवित्र जीवन ही संसारी मनुष्यों के लिए लाभदायी होता है। 101
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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