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अपने राजकुमार के शुभागमन के उपलक्ष्य में सारी नगरी को खूब सजायी । प्रत्येक घर के द्वारपर मंगल-तोरण लगाये और अग्रवेदिका पर मंगल-कलश स्थापित किये । विजयी उत्तमकुमार ने अपने माता-पिता के चरणों को स्पर्श कर चरण धूलि को मस्तक से लगाया । पुत्र-प्रेमी माता-पिता ने अपने प्यारे पुत्र को हृदय से लगा कर अत्यधिक आनन्द का अनुभव किया । उत्तमकुमार की चतुर चौकड़ी के नाम से प्रसिद्ध चारों बहुओं ने अपनी सासू के पैर छुए । सासू ने भी चारों को हृदय से लगा सौभाग्यवर्द्धक आशीर्वाद दिया । | पुण्यशाली उत्तमकुमार के आगमन से हर्षित हो, राजा मकरध्वज ने अपने पुत्र को वाराणसी राज्य के राज्यासन पर बैठाया और स्वयं निवृत्ति मार्ग ग्रहण करने के लिए उत्सुक हुआ । अपने पूज्य पिता को आत्म-साधन करने का अधिकारी समझ कर, उत्तमकुमार ने वाराणसी राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली । पुत्र को राज्यासन पर बिठा कर मकरध्वज राजा दीक्षा ले, आत्म-साधन करने लगा।
प्रिय पाठक ! देखो, पुण्य का प्रभाव कैसा अनुपम है ? एक राज्य के महाराजा का राजपुत्र जो मन में क्षुभित होकर, अकेला जंगल में चला गया था, वह आज मोटपल्ली, चित्रकूट, गोपाचल और वाराणसी, इन चार राज्यों का स्वामी बना । चार चतुर स्त्रियों का पति हुआ, और अटूट सम्पत्ति का मालिक बना। | यह केवल पुण्य का ही प्रभाव है। पुण्य के प्रभाव से उत्तमकुमार एक चक्रवर्ती राजा
के समान ऐश्वर्य का उपभोग करने लगा । उसके अधिकार में चालीस लाख |घोड़े, चालीस लाख रथ, और चार करोड़ पैदल सेना थी । चालीस करोड़ गाँवों की प्रजा उत्तमकुमार की आज्ञा मानती थी । यह सब उसके पुण्य की ही महिमा थी।
यद्यपि उत्तमकुमार इतनी महान् सम्पत्ति तथा समृद्धि का स्वामी और | प्रतापी था तथापि उसमें धार्मिक वृत्ति निरंतर बनी रहती थी । अहंकार का नामोनिशान नहीं था । ज्यों-ज्यों उसका ऐश्वर्य बढ़ता गया, त्यों-त्यों वह धार्मिक वृत्ति में भी उत्तरोत्तर बढ़ता गया । समृद्धिशाली चार राज्यों का अधिपति
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