SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुधारने में सहायक होंगे।" राजा महीसेन की यह प्रार्थना सुनकर उत्तमकुमार के हृदय में भाव दया उत्पन्न हुई और उसने कुछ भी आनाकानी न करते हुए उसका राज्य अङ्गीकार कर लिया । उत्तमकुमार चित्रकूट के विशाल राज्य का स्वामी बना और राजा महीसेन दीक्षा लेकर कहीं चल दिया। उत्तमकुमार वहां पर अपनी सत्ता कायम कर वाराणसी नगरी की ओर जाने लगा । उस मार्ग में गोपाचल राज्य आया । गोपाचल का राजा वीरसेन, उत्तमकुमार को बड़ी भारी सेना लिये आया देख उसके पास यह कविता एक दूत के हाथ लिख भेजी "युद्ध करन की आपमें, हो रजपूती शान। जल्दी से आ जाइए यहाँ, होगा रण घमसान ॥" यह काव्य संदेश पढ़ कर उत्तमकुमार युद्ध के लिए उत्तेजित हो उठा। इतने ही | में वह गोपाचल नरेश वीरसेन भी बड़ी भारी सेना लिये हुए युद्ध करने के लिए सामने आ पहुंचा। ऊपर जो युद्ध का वर्णन दिया गया है, वह उत्तमकुमार और वीरसेन के युद्ध का वर्णन है। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। अन्त में वीर शिरोमणि उत्तमकुमार के सैनिकों ने वीरसेन के सैनिकों को हरा कर भगा दिया। बाद में उत्तमकुमार ने राजा वीरसेन को पकड़ लिया । मान रहित होने पर वीरसेन के हृदय में वैराग्य भावना प्रकट हुई । इसलिए उसने अपना राज्य उत्तमकुमार को सौंप कर, संयम का राज्य ग्रहण किया। धर्मवीर, उत्तमकुमार चित्रकूट और गोपाचल पर्वत के, दोनों राज्यों का मालिक बन कर वाराणसी नगरी में आ पहुँचा । महाराजा मकरध्वज को अपने पुत्र उत्तमकुमार के आने की सूचना पहिले ही से मिल गयी थी । अतएव पुत्रवत्सल पिता बड़े ठाठ-बाठ से सेना सहित पुत्र को लेने के लिए आगे आया । | उसने बड़ी धूम-धाम से अपने पुत्र का प्रवेशोत्सव किया और उस दिन सारे राज्य | | में अत्यन्त आनन्द मनाया गया । वाराणसी नगरी की राज भक्त प्रजा ने 99
SR No.022663
Book TitleUttamkumar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Jain, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy