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धनपाल का पाण्डित्य
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अप्सरायें राक्षसादि सम्मिलित हैं, की कथायें तिलकमंजरी में आयी हैं। इससे धनपाल की पुराणेतिहास सम्बन्धी व्युत्पति की जानकारी प्राप्त होती है। पुराण तथा इतिहास से अनभिज्ञ व्यक्ति ऐसे स्थलों का अर्थ नहीं जान सकता, जहां पौराणिक कथाबों का उल्लेख किया गया है । अगस्त्य
____ अगस्त्य मुनि ने सातों समुद्रों के जल को अपने चुलुक में भरकर पान कर लिया था। इस प्रसिद्ध कथा का अनेक बार उल्लेख किया गया है। अगस्त्य की घट से उत्पत्ति मानी गयी है । उर्वशी को देखकर मित्रा तथा वरुण का वीर्य यज्ञ के घड़े में गिर गया था, जिससे अगस्त्य एवं वशिष्ठ की उत्पत्ति हुई। कलश-योनि, कुम्भयोनि, कुटज (360) ये नाम भी इसी कथा की ओर संकेत करते हैं। तिलकमंजरी में इस कथा का संकेत तीन स्थानों पर दिया गया है।
एक समय सुमेरु की स्पर्धा से विन्ध्यपर्वत निरन्तर बढ़ने लगा । देवताओं की प्रार्थना पर अगस्त्य मुनि उसके पास गये, तब विन्ध्य उनके पैरों में गिरकर याचना करने लगा। मुनि ने उसे अपने लौटने पर्यन्त उसी अवस्था में स्थिर रहने का आदेश दिया, अत: मुनि के वचनानुसार वह आज भी उसी स्थिति में स्थित है। इस कथा का उल्लेख तिलकमंजरी में अनेकधा प्राप्त होता है।
1. पद्मपुराण, प्रथम खण्ड 19; महाभारत, 3,105 2. (क) आपीतसप्तार्णवजलस्य रत्नोद्वारमिव तीव्रोदानवेगानिरस्तमगस्त्यस्य,
-तिलकमंजरी, पृ 23 (ख) कवलितोऽगस्त्यचुलुकस्पर्धयेव........
. -वही, पृ. 249 (ग) ग्रस्तसागरागस्त्यजठरस्य ख्यातिदुःखेनेव क्षीणकुक्षिम.......
-वही, पृ. 125 (घ) अगस्त्यजठरानलमिव पानावसरलग्नम्, - वही, पृ. 121 3. (क) कलशयोनिप्रसादनायात.......
-वही, पृ. 151 (ख) ........""कुम्भयोनिनेव ।
-वही, पृ. 262 महाभारत, 3,104 (क) अप्रयत्नभग्नसंततवधिषु भूभृत्तदुप्नतिना.....""कुम्भयोनिनव...... ।
-तिलकमंजरी, पृ. 262 (ख) कलशयोनिप्रसादनायातविन्ध्यशैल........ -वही, पृ. 151 (ग) अभ्यर्थनापदेशस्तम्भितोदयमगस्त्यमुनिभियोद्धमुच्चलिताभिविन्ध्यशिखरावलीभिरिव........
- -वही, पृ. 82 (घ) मेरूमत्सरिणा .."विन्ध्यगिरिणेव प्रतिदिनं प्रवर्धमानेन....
-वही, पृ. 160