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________________ तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन अगस्त्य नक्षत्र के दक्षिण दिशा में चमकने का उल्लेख प्राप्त होता है । 1 अर्जुन अर्जुन अद्वितीय धनुर्धारी था । 2 अर्जुन ने शिव से दिव्यास्त्र की प्राप्ति के लिए तपस्या की, जिसकी परीक्षा करने के लिए शिव ने किरात का वेश धारण किया था । अभिमन्यु 60 कौरव-पांडव युद्ध में अभिमन्यु चक्रव्युह में फंस गये थे। इस कथा का संकेत प्राप्त होता है | अंगद अंगद बालि का पुत्र था । अंगदादि वानरों ने त्रिकूट पर्वत के पत्थरों से सेतु का निर्माण किया था (पृ. 135 ) । अंगद के सुग्रीव की सेना में होने का उल्लेख किया गया है (पृ. 55 ) । इन्द्र तिलकमंजरी में इन्द्र सम्बन्धी अनेक कथाओं का उल्लेख मिलता है । इन्द्र के 25 पर्यायवाची शब्द प्राप्त होते हैं, जिनसे उसकी भिन्न-भिन्न विशेषताओं का पता चलता है । इन्द्र के लिए प्रयुक्त शब्द - शक्र (5,142), सुरेन्द्र (7,74375), शतऋतु ( 7 ), वासव ( 12,407), बिडौजस (14), पुरन्दर (30), त्रिलोकीपति ( 30 ), पाकशासन ( 39, 62, 163), त्रिदशपति ( 42 ), वृत्रशत्रु ( 39 ), आखण्डल (43, 71), त्रिदशनाथ ( 44 ), सुरपति ( 42 ), इन्द्र (62), शतमन्यु ( 78, 407), देवराज (99), वज्री (99), संक्रन्दन (105), अमरपति (121), जम्भारि (198), सहस्त्राक्ष (225) पुरुहूत (236), स्वणार्थं (262), मधवत् (305), शतमख ( 371 ) । इन्द्र स्वर्ग का स्वामि है ( 230, 42, 44, 121, 262) तथा वह सदा अपने पद के अपहरणके प्रति शंकित रहता है (पृ. 7, 24) । इन्द्र के द्वारा अपने वज्र से पर्वतों के पंख काट दिये जाने का अनेक स्थानों पर उल्लेख आया है (पृ. 71, 14, 35, 72, 262) 15 भुवनत्रयाभिनन्दितोदयेन कुम्भयोनिनेव" 1. 2. पार्थवत् पृथिव्यभिकधन्वी " वही, पृ. 36 3. 4. 5. ..दक्षिणा दिक् । - वही, पृ. 262 तथा 25, 56 - वही, पृ. 95 -वही, पृ. 89 अभिमन्युरिव चक्रव्यूहस्य ....... अविशन्मध्यम् ततः क्रुद्धः सहस्राक्षः पर्वतानां शतक्रतुः । पक्षांश्चिच्छेद वज्रेण ततः शतसहस्रशः ॥ - वाल्मीकि रामायण, सुन्दरकाण्ड 1, 124
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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