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________________ तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन आभूषणों - हार तथा अंगुलीयक से पूर्व जन्म स्मरण हो आने पर उनका एकशृंग व रत्नकूट पर्वतों पर पुनर्मिलन होता है । 44 लोककथाओं की पद्धति पर आधारित के दो जन्मों के इस कथानक को प्रस्तुत करने के लिए लोककथाओं की अन्तर्कथा-पद्धति को अपनाया गया है । इस पद्धति में प्रमुख समाविष्ट कथा में अन्य समाविष्ट कथा को रख दिया जाता है । जो घटना किसी पात्र पर घटित होती है, वह कथानक के अन्य पात्र के कहे जाने पर, उस अन्य पात्र मुख से पाठक तथा कथा के अन्य पात्रों तक पहुँचती है । इस प्रकार मुख्य कथा का पात्र अवान्तर कथा के पात्रों के वृत्तान्तों को अपने मुख से दुहराता है, जो उसे अवान्तर कथा के पात्रों ने स्वयं अपने मुख से कहे हैं । यथा मलयसुन्दरी ने अपनी जो कथा नायक हरिवाहन को पहले सुनायी थी, वही हरिवाहन के मुख से समरकेतु आदि अन्य पात्रों तथा पाठकों को कही गयी । कथाओं का यह गर्मीकरण लोककथाओं की विशिष्टता थी, जैसाकि पंचतन्त्र तथा हितोपदेश एवं गुणाढ्य की बृहत्कथा में पाया जाता है । अतः अन्तर्कथा की यह पद्धति लोक-कथाओं से ग्रहण की गयी है । विभिन्न कथा मोड़ों का स्पष्टीकरण तथा औचित्य कहानी की घटनाओं का क्रमपूर्वक वर्णन न करके पूर्वोत्तर की घटनाओं को बीच-बीच में विभिन्न कथा - मोड़ों ( फ्लेश बैक ) में प्रस्तुत करके उसे रोचक बनाया जाता है । इस प्रकार के कथानक में रोचकता के साथ-साथ जटिलता का भी समावेश हो जाता है, जिसे पाठक अपनी बुद्धि से विभिन्न कथा मोड़ों के परस्पर सम्बन्ध को जोड़कर तथा घटनाओं के पूर्वानुक्रम को समझकर सुलझाता है । तिलकमंजरी कथा को पांच कथा-मोड़ों में प्रस्तुत किया गया है - - प्रथम कथा मोड़ अयोध्या - वर्णन, मेघवाहन वर्णन, मेघवाहन की पुत्र चिन्ता, विद्याधर मुनि से भेंट, विद्याधर मुनि का जप - बिद्या प्रदान करना, वैमानिक ज्वलनप्रभ से भेंट, वेताल का प्रकट होना, लक्ष्मी द्वारा वर प्रदान, हरिवाहन का जन्म, यहां तक घटनाक्रम बिना किसी मोड़ के सीधा चलता है । प्रथम कथा - मोड़ है, विजयवेग द्वारा वज्रायुध तथा कांची नरेश कुसुमायुध के युद्ध का वर्णन 11 इस कथा मोड़ के द्वारा कथा में उपनायक समरकेतु का प्रवेश कराया गया है तथा मेघवाहन द्वारा नायक हरिवाहन के सखा के रूप में नियुक्त करने के लिए राजपुत्र 1. तिलकमंजरी, पृ. 82 - 100
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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