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________________ तिलकमंजरी की कथावस्तु का विवेचनात्मक अध्ययन की है। इसके अतिरिक्त गन्धर्वक की कथा, मेघवाहन-मदिरावती, कुसुमशेखरगन्धर्वदत्ता, अनंगरति आदि छोटे-छोटे वृत्त प्रकरी प्रासंगिक कथा के भेद के अन्तर्गत आते हैं। ___ इस प्रकार तिलकमंजरी में कथावस्तु के आधिकारिक, पताका तथा प्रकरी तीनों भेद पाये जाते हैं । इन तीन भेदों के अतिरिक्त विषयवस्तु की दृष्टि से इतिवृत्त पुनः तीन प्रकार का कहा गया है-प्रख्यात, उत्पाद्य तथा मित्र ।। प्रख्यात इतिवृत्त इतिहास, पुराणादि पर आधारित होता है। उत्पाद्य कविकल्पित होता है तथा मित्र दोनों प्रकार का । तिलकमंजरी का इतिवृत्त स्वयं धनपाल की कल्पना से प्रसूत है, अतः यह उत्पाद्य श्रेणी का है। .. तिलकमंजरी का वस्तु-विन्यास पुनर्जन्म का सिद्धान्त तिलकमंजरी की कथावस्तु पुनर्जन्म के सिद्धान्त पर आधारित है। इस सिद्धान्त की विवेचना धनपाल ने प्रारम्भ में ही वैमानिक ज्वलनप्रभ के इस कथन में कर दी है, कि इस भवसागर में अपने-अपने कर्मों से बंधे हुए जीवों का जन्म-जन्मान्तर के सम्बन्धों से अपने बन्धुओं, मित्रों तथा भिन्न-भिन्न प्रकार की वस्तुओं से पुनः पुनः सम्बन्ध होता है। यही सिद्धान्त इस कथा का प्रमुख आधार है। इसमें हरिवाहन तथा तिलकमंजरी एवं समरकेतु और मलयसुन्दरी के दो जन्मों की कथा प्रस्तुत की गयी है। प्रथमतः दैवयोनि में जन्म लेने वाले ज्वलनप्रभ तथा सुमालि दोनों मित्र अपनी दैवायु समाप्त प्राय: जानकर, बोधिलाभ के लिए तीर्थ यात्रा पर निकलते हैं । ज्वलनप्रभ तथा सुमालि दोनों की पत्नियां, प्रियंगुसुन्दरी तथा प्रियम्बदा प्रियवियोग से दुःखी होकर जयन्तस्वामि सर्वज्ञ के आदेशानुसार स्वर्गलोक छोड़कर, भारतवर्ष के एकशृग और रत्नकूट पर्वतों पर एक-एक जिनायतन का निर्माण कर समागम की प्रतीक्षा करती है, किन्तु इस प्रकार प्रतीक्षा में ही उनकी दिव्यायु समाप्त हो जाती हैं और वे पृथ्वी पर तिलकमंजरी तथा मलयसुन्दरी के रूप में जन्म लेती हैं। इसी प्रकार ज्वलनप्रभ और सुमालि भी हरिवाहन और समरकेतु के रूप में जन्म लेते हैं और दिव्य 1. प्रख्यातोत्पाद्यमिश्रत्वभेदात्त्रेधापि तत्त्रिधा । प्रख्यातमितिहासादेरूत्पाधं कविकल्पितम् ।। -धनंजय, दशरूपक, 1/25 2. सम्भवन्ति च भवार्णवे विविधकर्मवशवर्तिनां जन्तूनामेकशो जन्मान्तरजातसंबन्धबन्धुमिः सुहृदिभरथश्च नानाविधः सार्धमबाधिताः पुनस्ते सम्बन्धाः । -तिलकमंजरी, पृ. 44
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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