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________________ तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन है।1 तिलकमंजरी कथा में नायक हरिवाहन तथा नायिका तिलकमंजरी की प्रेमकथा आधिकारिक इतिवृत्त है। अन्य सभी उपकथायें तथा अन्तर्कथायें इस प्रमुख कथा के विकास में सहयोग देती हैं। प्रासंगिक इतिवृत्त जो कथा दूसरे (अर्थात् आधिकारिक कथा) के प्रयोजन के लिए होती है, किन्तु प्रसंगवश जिसका अपना फल भी सिद्ध हो जाता हो, वह प्रासंगिक कथावस्तु है। प्रासंगिक कथा भी दो प्रकार की है-पताका तथा प्रकरी । पताका __ अनुबन्ध सहित तथा काव्य में दूर तक चलने वाली प्रासंगिक कथा पताका कहलाती है। यह मुख्य नायक के पताका चिन्ह की तरह मुख्य कथा तथा नायक की पोषक होती है। तिलकमंजरी में समरकेतु तथा मलयसुन्दरी की प्रेम-कथा प्रासगिक कथावस्तु के पताका भेद के अन्तर्गत आती है, क्योंकि यह कथा काव्य में दूर तक वणित की गई है तथा यह मुख्य कथा के विकास में सहायक है । इस कथा एवं मुख्य कथा के पात्र न केवल एक जन्म में अपितु दोनों जन्मों में परस्पर जुड़े हुए हैं। देवयोनि में ज्वलनप्रभ व सुमालि मित्र हैं तथा प्रियंगुसुन्दरी वं प्रियम्वदा सखियां हैं, इसी प्रकार मनुष्य योनि में हरिवाहन तथा समरकेतु परम मित्र हैं और तिलकमंजरी तथा मलयसुन्दरी सखियां हैं । इस कथा का नायक पताकानायक अथवा पीठमर्द कहलाता है। वह चतुर तथा बुद्धिमान होता है तथा प्रधान नायक का अनुचर एवं भक्त होता है। वह प्रधान नायक की अपेक्षा गुणों में कुछ कम होता है । समरकेतु इन समस्त गुणों से युक्त है। प्रकरी . एक ही प्रदेश एक सीमित रहने वाली प्रासंगिक कथा प्रकरी कहलाती है । तिलकमंजरी में नाविक तारक नथा प्रियदर्शना की प्रेम-कथा इसी प्रकार 1. अधिकारः फलस्वाम्यमधिकारी च तत्प्रमुः । तन्निवृ त्तमभिव्यापि वृत्तं स्यादाधिकारिकम् ।। - वही, 1/12 2. प्रासङ्गिकं परार्थस्य स्वार्थो यस्य प्रसङ्गनः । बही, 1/13 ___ सानुबन्धं पताकाख्यम् ........."। -धनंजय-दशरूपक, 1/13 पताकानायकस्तत्वन्यः पीठम? विचक्षणः । तस्यैवानुचरो भक्तः किंचिदूनश्च तद्गुणः ।। -वही, 2/8 5.. ...""प्रकरी च प्रदेशभाक् । -वही, 1/13
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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