________________
तिलकमंजरी की कथावस्तु का विवेचनात्मक अध्ययन
लिखित था, कि मलयसुन्दरी का समरकेतु के साथ विवाह निश्चित किया गया है। और गन्धर्वदत्ता तथा कुसुमशेखर अत्यधिक उत्कण्ठा से राजकुमार समरकेतु की प्रतीक्षा कर रहे हैं । मलयसुन्दरी भी समरकेतु के दर्शन से पहले वनवास-वेश का त्याग नहीं करेगी । अतः कल्याणक ने समरकेतु को शीघ्र सुवेल पर्वत पर ले जाने की अनुमति मांगी। हरिवाहन ने अत्यन्त आश्चर्य से पूछा कि द्वीपान्तरवासी विद्याधर नरेश को समरकेतु के आगमन का ज्ञान किस प्रकार हुआ । कल्याणक ने कहा कि जैसे ही समरकेतु हरिवाहन के प्रासाद में आया, मृगांकलेखा नामक तिलकमंजरी की प्रधानसहचरी ने यह समाचार राजमहिषी पत्रलेखा को सुनाया । पत्रलेखा ने चित्रलेखा को भेजकर एकशृंग पर्वत से मलयसुन्दरी को बुला लिया और विचित्रवीर्य को भी तुरन्त सूचित कर दिया गया ।
41
हरिवाहन ने तुरन्त इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और विद्याधरसैन्य सहित समरकेतु को सुवेल पर्वत पर भेज दिया। इधर हरिवाहन का विजयार्धगिरि के उत्तरी क्षेत्र के नृपति के पद पर अभिषेक किया गया । कुछ दिन पश्चात् वह दक्षिणी क्षेत्र के अधिपति चक्रसेन का अतिथि बनकर गया, जहां तिलकमंजरी के साथ उसका विवाह सम्पन्न हुआ, तदुपरान्त दोनों दम्पत्ति सैन्य सहित अपने निवास स्थान लौट आये । हरिवाहन ने अपने प्रधानपुरुषों को भेजकर मलयसुन्दरी सहित समरकेतु को आमन्त्रित किया तथा उसे अपने समस्त राज्य का अधिकारी बना दिया ।
राजा मेघवाहन ने भी राज्य से विरक्त होकर हरिवाहन को शुभ दिन राजसिंहासन पर शास्त्रोक्त विधि से बैठाया तथा स्वयं परलोक साधनोन्मुख हो गया । हरिवाहन भी अयोध्या पर सुखपूर्वक एकच्छत्र शासन करने लगा ।
अधिकारिक तथा प्रासंगिक इतिवृत
कथावस्तु दो प्रकार की कही गयी है – ( 1 ) अधिकारिक तथा ( 2 ) प्रासंगिक । इनमें प्रमुख कथावस्तु अधिकारिक कहलाती है तथा अंगरूप कथावस्तु प्रासंगिक कहलाती है। 1
अधिकारिक इतिवृत्त
कथा के प्रधान फल का स्वामी अधिकारी कहलाता है तथा उस फल या फल-भोक्ता के द्वारा फल प्राप्ति पर्यन्त निर्वाहित कथा आधिकारिक कहलाती
1. तत्राधिकारिकं मुख्यमङ्ग प्रासङ्गिकं विदुः ।
- धनंजय - दशरूपक, 1/11