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________________ 40 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन रूप में जन्मी । दूसरी ओर सुमाली ने सिंहलाघिय चन्द्रकेतु के पुत्र समरकेतु के रूप में जन्म लिया। महर्षि से अपने पूर्वजन्मों का वृत्तान्त सुनकर वे दोनों अपने पटमण्डप में लौट आई। तभी तिलकमंजरी की दाहिनी आंख किसी अनिष्ट की आशंका से फड़कने लगी। उसी समय चित्रमाय ने आकर सूचित किया कि सम्पूर्ण एकशग पर्वत का अन्वेषण करने पर भी कुमार हरिवाहन का पता नहीं चला । मलयसुन्दरी के कहने पर तिलकमंजरी स्वयं अपना मणि-विमान लेकर दिन-भर आपको खोजती रही और संध्या-समय निराश होकर अपने निवास स्थान को आ गई। प्रातः संदीपन नामक विद्याधर ने समाचार दिया कि निषादों द्वारा राजकुमार हरिवाहन को विजयार्धपर्वत के सार्वकामिक प्रपात शिखर पर चढ़ते हुए देखा गया, उसके बाद उसका कोई पता नहीं चला। यह सुनते ही तिलकमंजरी मूर्छित हो गई। संज्ञा आने पर उसने भगवान् जिनकी विशेष पूजा की ओर जन्मान्तर में भी उनसे शरण देने की प्रार्थना की तथा अदृष्टपार सरोवर में प्रवेश करने की इच्छा से जाने लगी किन्तु उसी समय राजा चक्रसेन का महाप्रतीहार यह सूचित करने आया, कि नैमितिकों द्वारा हरिवाहन की कुशलता का आश्वासन दिया गया है तथा राजा के आदेश से विद्याधर सैनिक समस्त पृथ्वी पर कुमार का अन्वेषण कर रहे हैं अतः छः मास की अवधि पर्यन्त राजकुमारी यह विचार त्याग दे। तब से तिलकमंजरी ने वनवास ग्रहण कर लिया । जब अवधि समाप्त होने में एक दिन शेष रहा तो उसके देह त्याग का उपक्रम देखकर, स्वयं उससे पहले ही मरण का संकल्प करके में सार्वकामिक प्रपात की ओर आया किन्तु आपके विद्याधर-रक्षकों द्वारा पकड़कर आपके चरणों में उपस्थित कर दिया गया।" गन्धर्वक द्वारा वणित हार-दर्शन प्रभृति तिलकमंजरी के इस वृत्तान्त को सुनकर मुझे अपने पूर्वजन्मानुभूत स्वर्ग-निवास के सुखों का स्मरण हो आया और उसी समय में अश्व पर आरूढ़ होकर एकशृग पर्वतस्थ जिनायतन में गया । पूजा करके मैंने गन्धर्वक को मलयसुन्दरी से अपना समस्त वृत्तान्त सुनाने के लिये नियुक्त किया तथा स्वयं शिशिरोपचार ग्रहण करती हुई तिलकमंजरी के पास जाकर उसे आश्वस्त किया । इतने में ही गन्धर्वक के पास तुम (समरकेतु) पहुंच गये । यहीं पर हरिवाहन वर्णित कथा समाप्त होती है। हरिवहन के इस अद्भुत आत्मवृत्तान्त से सभी नभचर अत्यधिक आनन्दित हुए, केवल समरकेतु ही अपने पूर्व-जन्म का स्मरण कर शोक-विह्वल हो इसी विद्याधरपति विचित्रवीर्य का संदेशवाहक कल्याणक लेख लेकर आया । उसमें
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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