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________________ तिलकमंजरी की कथावस्तु का विवेचनात्मक अध्ययन 45 अन्वेषण रूप उद्देश्य की पूर्ति की गयी है । इसमें समरकेतु का परिचय मात्र दिया गया है, मलयसुन्दरी से उसके सम्बन्ध के विषय में कोई उल्लेख नहीं है, किन्तु इस वर्णन में कामदेवोत्सव के दिन समरकेतु द्वारा शृंगारवेष धारण करके कामदेव के मन्दिर में स्त्रियों का निरीक्षण करने का जो उल्लेख किया गया है, उसका सम्बन्ध आगे मलयसुन्दरी की कथा के अन्तर्गत समरकेतु के वृत्तान्त से जुड़ता हैं।1 द्वितीय कथा मोड़ हरिवाहन तथा समरकेतु परम मित्रों के समान परस्पर समय व्यतीत करते हैं, किन्तु एक दिन मत्तकोकिलोद्यान में मंजीर द्वारा प्राप्त एक प्रेम पत्र के श्रवण से समरकेतु को अपना पूर्व-वृत्तान्त स्मरण हो आता है तथा कमल गुप्तादि के पूछने पर वह अपना पूर्ववृत्तान्त वणित करता है। इस प्रकार कथा पुनः वर्तमान से भूत में चली जाती है । समरकेतु के दिग्विजय का वर्णन ही इसका प्रमुख उद्देश्य है। समुद्र-यात्रा तथा नौ-अभियान का विशद वर्णन इसकी विशिष्टता है । समुद्र यात्रा का ऐसा स्वाभाविक व विस्तृत वर्णन संस्कृत साहित्य में अन्यत्र दुर्लभ है । समरकेतु की कथा "एक अद्वितीय रूपवती कन्या को देखा", यहीं तक आकर अवच्छिन्न हो जाती है, इससे आगे की कथा मलयसुन्दरी के मुख से कही गयी है । समरकेतु के वृत्तान्त के अन्तर्गत तारक अवान्तर कथा भी आ जाती है । इसके पश्चात् कथा में पुनः नाटकीय मोड़ आता है । तृतीय कथा मोड़ समरकेतु के वृत्तान्त को अधूरा ही छोड़कर इस नाटकीय मोड़ के द्वारा नायिका तिलकमंजरी का प्रथम परिचय गन्धर्वक द्वारा उसके चित्र से दिया जाता है। यहां नायिका तिलकमंजरी प्रत्यक्ष रूप से नहीं आयी उसके चित्र से उसका परिचय दिया गया है तथा उसके पुरुष-द्वेष के विषय में सूचना दी गयी है। इस कथा-मोड़ का प्रमुख उद्देश्य नायिका के चित्र-दर्शन से नायक के हृदय में प्रेम का अंकुरण है। दूसरा उद्देश्य उपनायिका मलयसुन्दरी को समरकेतु द्वारा पत्र प्रेषित कर उसे आत्महत्या से बचाना है। समरकेतु गन्धर्वक को अपनी कुशलता का पत्र कांची नगरी में मलयसुन्दरी को देने के लिए कहता है । इस घटना का सम्बन्ध आगे वर्णित मलयसुन्दरी के इस वृत्तान्त से जुड़ता है, जिसमें वह वज्रायुध 1. तिलकमंजरी, पृ. 322-23 2. तिलकमंजरी, पृ. 114-161 3. वही, पृ. 259-345 4. वही पृ. 161, 167-171 5. तिलकमंजरी, पृ. 173
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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