SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 36 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन आश्वस्त किया और कहा कि मैं समरकेतु के विषय में जानता हूँ और वह कुशलपूर्वक है, किन्तु उसे मैं अपनी कुशलता का समाचार किस प्रकार भेजूं । इतने में ही वहां एक शुक आया और मनुष्य की वाणी में इस कार्य को सम्पन्न करने की आज्ञा मांगी । मैंने एक लेख लिखकर उसे मेरे मित्र कमलगुप्त के पास शिविर में पहुँचाने के लिए दिया । शुक के उड़ जाने पर मैं मलयसुन्दरी के साथ उसके मठ में आया। दूसरे दिन चतुरिका नाम की दासी तिलकमंजरी का संदेश लेकर आई, जिसमें उसकी अस्वस्थता का उल्लेख था । उसने यह भी सूचित किया कि जब से उसने वन में महावारण को जल में प्रवेश करते हुए देखा है, तभी से वह अस्वस्थ है और यह रोग प्रेम सम्बन्धी ही प्रतीत होता है। इस पर मलयसुन्दरी ने अपने यहां माननीय अतिथि हरिवाहन के आगमन के कारण तिलकमंजरी के पास जाने में असमर्थता प्रकट की। इस समाचार से मेरे हृदय में पुनः आशा का संचार हो गया और वह रात्रि मुझे अतिदीर्घ प्रतीत हुई। प्रातःकाल होने पर तिलकमंजरी स्वयं दिव्यायतन में आई । मलयसुन्दरी ने मुझे उसका परिचय दिया और चित्रकला, संगीत नाट्यादि विषय पर परस्पर वार्तालाप करने का आग्रह किया। मैंने तिलकमंजरी की उदासीनता देखते हुए उससे बातचीत करना अनुचित समझा, किन्तु उसे अयोध्या भ्रमण करने का निमन्त्रण दिया। तिलकमंजरी इस बार भी प्रत्युत्तर नहीं दे सकी, केवल अपने हाथ से ताम्बूल ही दे सकी और अपने निवास स्थान पर चली गई। उसके कुछ कदम चलने पर ही उसकी प्रधान द्वारपाली मन्दुरा ने आकर मुझे और मलयसुन्दरी को रथनुपूरचक्रवाल नगर चलने के लिए आमन्त्रित किया। मलयसुन्दरी ने उसे तुरन्त स्वीकार कर लिया। तब हम विमान में आरुढ़ होकर विद्याधर राजधानी पहुंचे, जहां हमारा राजकीय सम्मान किया गया। तत्पश्चात् तिलकमंजरी के प्रासाद में हमारे लिए विशेष भोज का आयोजन किया गया । भोज की समाप्ति पर महाप्रतिहारी मन्दुरा ने एक शुक के आगमन का समाचार दिया। वह लौहित्य पर्वत पर स्थित शिविर से कमलगुप्त का प्रत्युत्तर लेकर आया था । मैंने उसे अपने उत्संग में बैठाया। उसी समय तिलकमंजरी की शयनपाली कुन्तला ने निशीथ नामक अद्भुत दिव्य वस्त्र लाकर दिया, जिसे धारण करने से अदृश्य होकर भी नगरी का भ्रमण किया जा सकता था । जैसे ही मैंने उस वस्त्र को धारण किया, मेरी गोद से एक नवयुवक उठा, जो गन्धर्वक ही था। इस आश्चर्यजनक समाचार को सुनकर तिलकमंजरी और मलयसुन्दरी भी वहां आ पहुंची। गन्धर्वक ने सभी को प्रणाम कर, अयोध्या प्रस्थान से लेकर अपनी कथा कही।
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy