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तिलकमंजरी की कथावस्तु का विवेचनात्मक अध्ययन
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अन्य सुहृदजनों के साथ साकेतनगर से निकल पड़ा। कुछ दिन बाद वे सभी कामरूप देश में पहुंचे ।
__ एक दिन जब वे लौहित्य नदी के तट पर गीत-गोष्ठी कर रहे थे, वहां पुष्कर नामक हस्ती-पालक आया और मदगन्ध से विक्षिप्त हुए वैरियमदण्ड नामक प्रधान हाथी को वश में करने के लिये कहा । हरिवाहन ने अपनी वीणा बजाकर उसे सम्मोहित कर लिया और जैसे ही वह उस पर चढ़ा, अचानक वह हाथी उसे लेकर आकाश में उड़ गया। समरकेतु और अन्य राजपुत्रों ने तुरन्त उसका अनुसरण किया किन्तु उसका कोई पता नहीं चला। इस प्रकार उसके अपहरण से निराश हुए समरकेतु को दूसरे दिन दूतों ने हाथी के दिखाई देने का समाचार दिया, किन्तु हरिवाहन का कोई सूत्र नहीं मिला । अतः दुःखी होकर समरकेतु ने आत्महत्या का निश्चय किया, तभी कमल गुप्त का एक संदेशवाहक हरिवाहन का पत्र लेकर आया और उसने यह भी बताया कि किस प्रकार कमलगुप्त को अचानक यह पत्र मिला और उसका प्रतिलेख एक शुक के द्वारा ले जाया गया।
इस समाचार से किंचित आश्वस्त होकर, अगले दिन समरकेतु हरिवाहन की खोज में उत्तर दिशा की ओर चला, जहां मार्ग में उसकी मेंट कामरूप नरेश के अनुज मित्रधर से हुई । अनेक पर्वतों, खटवियों, नगरों, ग्रामों आदि को पार करते हुए निरन्तर यात्रा करते-करते उसके छः मास व्यतीत हो गये। तब एक अत्यन्त दीर्घ एवं दुष्कर यात्रा के पश्चात् वह एक शृग पर्वत पर पहुंचा वहां उसने अदृष्टपार नामक अद्भुत सरोवर देखा। उसने उसमें स्नान किया और समीपस्थ माधवीलतामंदिर के एक मणिशिलाफ्ट पर सो गया। स्वप्न में उसने एक पारिजात वृक्ष देखा तो उसे मित्र-समागम का निश्चय हो गया । तभी उसे अश्ववृन्द की हृषाध्वनि सुनाई पड़ी। उस ध्वनि का अनुसरण करते हुए वह एक अत्यन्त रमणीय उपवन में पहुंचा । उसकी अलौकिक शोभा से वह अत्यन्त विस्मित हुआ। उसी उपवन के भीतर उसने एक कल्पतरूवन देखा जिसके मध्य सुदर्शन नामक दिव्यायतन उद्भासित हो रहा था। उसमें प्रवेश करके उसने जिनकी चिन्तामणिमय प्रतिमा के दर्शन किये और उनकी स्तुति की।
तदनन्तर उसने मत्तवारण में स्फटिकशिलापट्ट पर टंकित एक प्रशस्ति देखी । वह उस आयतन के अद्भुत शिल्पसौन्दर्य के विषय में सोच ही रहा था, तभी उसके कानों में "हरिवाहन" शब्द युक्त श्लोक के पाठ की अस्पष्ट ध्वनि पड़ी, जिसका अनुसरण करते हुए वह एक मठ में पहुंचा। वहां उसने गन्धर्वक को देखा, जो हरिवाहन की प्रशंसा में एक द्विपदी गा रहा था। तब समरकेतु गन्धर्वक के साथ हरिवाहन को देखने गया, जो उसी समय वैताढ्यपर्वत के