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________________ 32 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन चण्डगह्वर शिखर पर विद्याघरों द्वारा राज्याभिषेक किये जाने के बाद उस दिव्य कानन में आया था। वन में कुछ दूर जाने पर उन्होंने एक अश्व-वृन्द देखा तथा दिव्य मंगल-गीत की ध्वनि सुनी । तब उन्होंने एक अत्यन्त रम्य रम्भागृह में कुरूविन्दमणिशिला पर एक अतीव लावण्यवती राजकन्या के साथ बैठे हुए हरिवाहन को देखा। दोनों मित्रों ने मिलकर परमानन्द प्राप्त किया। तभी उनके नगर प्रवेश का समय हो गया। वताढ्य पर्वत की विशाल अटवी को पार करते हुए उन्होंने बड़े उत्सव के साथ नगर में प्रवेश किया और पौरजनों द्वारा अभिनन्दित होते हुए वे राजमहल में गये । वहां उन्होंने विद्याधर कुमारों के साथ भोजन किया । दूसरे दिन वे सभी वैताढय पर्वत पर पहुंचे और समरकेतु के पूछने पर हरिवाहन ने गज-अपहरण से लेकर यहां पहुंचने तक का सम्पूर्ण वृत्तान्त कहा । यहीं सारा कथा-स्त्र हरिवाहन के हाथ में आ जाता है और आगे की कथा सब उसी के द्वारा वर्णित है। हरिवाहन ने कहा-वह मदान्ध हाथी मुझे अन्तरिक्ष में बहुत दूर तक उड़ा कर ले गया और एक शृग पर्वत पर पहुंचने पर उसे वश में करने के प्रयत्न में मैं स्वयं उसके सहित अदृष्टपार नामक सरोवर में गिर पड़ा। सरोवर से बाहर आकर मैंने बालू में कई पद-चिन्ह देखे, जिनमें एक युगल अत्यन्त सुन्दर था। उसका अनुसरण करते हुए मैं एक लतागृह में पहुंचा, जहां रक्ताशोक के नीचे एक अद्वितीय सुन्दरी कन्या खड़ी थी। मैंने उसे अपना परिचय दिया तथा उसके विषय में पूछा किन्तु वह बिना कोई उत्तर दिये ही वहां से चली गई। उसकी उपेक्षा से निराश होकर "यह चित्र में देखी हुई तिलकमंजरी ही है, “इस चिंता में वहीं सो गया। प्रातः काल विचरण करते हुए मैंने एक पद्मरागशिलामय प्रासाद देखा, जहां मत्तवारण पर एक तापस कन्या बैठी थी। उसने जिन की पूजा करके, मेरा स्वागत किया और अपने त्रिभूमिक मठ में ले गयी। मेरे यह पूछने पर कि उसने यह तपस्वी-वेश क्यों धारण किया है, उसने सजल नेत्रों से अपना यह वृतान्त सुनाया। मलयसुन्दरी की कथा कांची नगरी में राजा कुसुमशेखर राज्य करता था। उनकी महारानी गन्धर्वदत्ता ने एक पुत्री को जन्म दिया, जिसके विषय में त्रिकालज्ञ बसुरात ने यह भविष्यवाणी की थी कि इस कन्या से विवाह करने वाले व्यक्ति को विद्याधर चक्रवर्तित्व की प्राप्ति होगी। दसवें दिन मेरा मलयसुन्दरी यह नामकरण हुआ।
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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