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तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
दी। उस ध्वनि का अनुसरण करते हुए हम अपने साथियों से बहुत दूर निकल गये और एक द्वीप पर पहुंचे किन्तु हमारे पहुंचते ही वह ध्वनि बंद हो गई। तब अत्यन्त निराश होकर वह रात्रि वहीं नाव पर ही व्यतीत की। प्रात:काल सहसा एक प्रकाशपुंज में से प्रकट होते हुए विद्याधर-समूह को देखा, तभी कुछ दूरी पर एक दिव्य-देवायतन दिखाई दिया। हम उसमें प्रवेश द्वार खोज ही रहे थे कि हमें मधुर नूपुरों की झंकार सुनाई पड़ी और हमने देवायतन की प्राकार-भित्ति पर अनेक कन्याओं के मध्य षोडषवर्षीय एक अत्यन्त सुन्दरी कन्या को देखा।"
___ यहीं प्रतीहारी के प्रवेश करने पर समरकेतु का वृत्तान्त बीच में ही अवरुद्ध हो जाता है। प्रतीहारी हरिवाहन को सूचित करती है कि गन्धर्वक नामक पन्द्रहवर्षीय युवक एक चित्र लेकर उपस्थित हुआ है । हरिवाहन उसे तुरन्त प्रवेश कराने की आज्ञा देता है । गन्धर्वक हरिवाहन को चित्र दिखाकर उसकी समीक्षा करने के लिये कहता है । हरिवाहन के यह कहने पर कि इस चित्र में एक मात्र दोष यही है कि इसमें एक भी पुरुष पात्र चित्रित नहीं है, गन्धर्वक चित्र का परिचय इस प्रकार देता है-"यह चित्र वैताढ्य पर्वत पर स्थित रथनुपूरचक्रवाल नगर के विद्याधर नरेश चक्रसेन की पुत्री तिलकमंजरी का है, जो किसी अज्ञात कारण से पुरुष सान्निध्य की अभिलाषा नहीं करती । उसकी ऐसी चित्तवृत्ति जानकर उसकी माता पत्रलेखा ने मेरी जननी चित्रलेखा को पृथ्वी के समस्त राजकुमारों के चित्र बनाने का आदेश दिया कि कदाचित् कोई राजकुमारी की दृष्टि में आ जाय । अतः मेरी माता चित्रलेखा ने चित्रकला में दक्ष अपनी दूतियों को चारों दिशाओं में भेजा । मुझे महारानी पत्रलेखा ने राज्यकार्य से अपने पिता विद्याधर नरेन्द्र विचित्रवीर्य के पास भेजा है और मेरी माता ने कांची में महारानी गन्धर्वदत्ता से मिलने के लिये कहा है, अतः मार्ग में कोई बाधा उपस्थित न होने पर, मैं शीघ्र ही लौटकर आऊंगा और एकाग्रमन से आपका चित्र अवश्य बनाउंगा, जो भर्तृ दारिका तिलकमंजरी के हृदय में प्रेम उत्पन्न करेगा।"
यह कहकर जब गन्धर्वक जाने लगा तो समरकेतु ने उसे कांची में कुसुमशेखर की पुत्री मलयसुन्दरी को देने के लिये एक लेख लिखकर दिया।
तिलकमंजरी के चित्र-दर्शन से ही हरिवाहन के हृदय में स्मर-विकार उत्पन्न हो गया और वह गन्धर्वक के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए निरन्तर उस चित्र को देखने में समय-व्यतीत करने लगा । वर्षा ऋतु प्रारम्भ होने पर उसकी व्याकुलता दुःसह हो उठी । वर्षाकाल व्यतीत हो जाने पर भी जब गन्धर्वक लौट कर नहीं आया, तो निराश होकर उसने मनोरंजन हेतु अपने राज्य का भ्रमण करने का निश्चय किया तथा पिता की आज्ञा प्राप्त कर समरकेतु तथा कतिपय