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________________ तिलकमंजरी की कथावस्तु का विवेचनात्मक अध्ययन 29 समरकेतु तुम्हारा परमविश्वसनीय सहचर बना दिया गया है। अतः तुम इसे सदा साथ रखना। राजकुमार हरिवाहन भी प्रेमपूर्वक समरकेतु का हाथ पकड़कर उसे अन्तःपुर में मदिरावती के पास ले गया। __ अपरान्ह में राजा की आज्ञा से सुदृष्टि नामक अक्षपटलिक आया और उसने हरिवाहन को कश्मीरादि मण्डल सहित उत्तरापथ की भूमि तथा समरकेतु को अंगादि जनपद कुमार-मुक्ति के रूप में प्रदान किए । एक दिन हरिवाहन समरकेतु तथा अन्य विश्वस्त मित्रों के साथ मत्तकोकिल नामक बाह्योधान में भ्रमण हेतु गया। वहां वे सरयू तट पर निर्मित कामदेव मंदिर के समीप स्थित जल-मण्डप में एक पुष्प-शय्या पर बैठ गये । वहां सभी कलाओं में निपुण राजपुत्र उसकी सेवा में उपस्थित हुए। तब उनमें चित्रालंकार बहुल काव्य-गोष्ठी प्रारम्भ हुई । उसी समय मंजीर नामक बंदीपुत्र ताडपत्र पर लिखे एक प्रेमपत्र को लेकर आया । हरिवाहन ने उसका यह अर्थ किया कि यह पत्र किसी धनिक पुत्री द्वारा अपने प्रेमी को गुप्त-विवाह के लिये स्थान का निर्देश भी करता है तथा साथ ही पत्रहारिका दूती को वक्रोक्ति द्वारा वंचित भी करता है । इस प्रसंग से समरकेतु को अपने पूर्व-प्रेम का स्मरण हो आया जिससे वह व्याकुल हो उठा । उसके मित्र कलिंग देश के राजकुमार कमलगुप्त के पूछने पर उसने अपना पूर्व-वृत्तान्त सुनाया। समरकेतु का वृत्तान्त __सिंहलद्वीप की राजधानी रंगशाला नामक नगरी में मेरे पिता चन्द्र केतु राज्य करते हैं। एक बार उन्होंने सुवेल पर्वत के दुष्ट सामन्तों के दमन हेतु, मुझे नौसेना का नायक बनाकर दक्षिणापथ की ओर भेजा । मैं सेना सहित नगर सीमा पार करके समुद्र तट पर आया, जहां मैंने एक पन्द्रह वर्षीय नाविक युवक को देखा । मेरे पूछने पर नौसेनाध्यक्ष ने इसका पूर्ववृत्तान्त सुनाया कि किस प्रकार मणिपुर में रहने वाले सायंत्रिकवणिक् वैश्रवण का यह पुत्र तारक यहां आकर नाविकों के अधिनायक जलकेतु की पुत्री प्रियदर्शना के प्रेमपाश में बंधकर, उससे विवाह करके यहीं बस गया और समस्त नाविकों का प्रमुख हो गया। उसी समय तारक ने आकर सूचित किया कि नाव सज्जित हो गई है। हम सभी नावों में सवार होकर चल पड़े। समुद्र की बहुत लम्बी यात्रा करके उस प्रदेश में पहुंचे तथा लोगों के दुष्ट व्रणों के समान उन दुष्ट सामन्तों का यथायोग्य उपचार कर उन्हें पुनः प्रकृतिस्थ किया। तदनन्तर अनेक द्वीपों का भ्रमण करते हुए कुछ दिन सुवेल पर्वत पर बिताए। एक दिन भ्रमण करते हुए ही हम अतिरमणीय रत्नकूट पर्वत पर पहुंचे जहां हमें दिव्य मंगल ध्वनि सुनाई
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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