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________________ 28 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन काचरात और काण्डरात नामक अश्वारोहियों ने समाचार दिया कि शत्रु की सेना कांची से शिविर की ओर आ रही है । सेनापति ने हर्षित होकर तुरन्त युद्धदुन्दुभि बजाने का आदेश दिया और सेना सहित रथारूढ़ होकर शिविर से निकल पड़ा । तदनन्तर व्यूह-रचना करके युद्ध हेतु सज्जित हो गया। तब दोनों सेनाएं आपस में गुत्थम-गुस्था हो गई। जब युद्ध-भूमि दोनों पक्षों के मृत वीरों से पट गई, तब प्रतिपक्ष की सेना से निकलकर एक अत्यन्त वीर योद्धा वज्रायुध के सामने आया और उसने वज्रायुध को धनुर्युद्ध के लिये ललकारा । तब उन दोनों में भीषण युद्ध छिड़ गया। वज्रायुध को पराजित होते देखकर विजयवेग को राजा द्वारा प्रेषित अंगूठी का स्मरण हो आया तथा उसने वह अंगूठी तुरन्त वायुध की अंगुली में डाल दी। उसके पहनते ही, उसके प्रभाव से समस्त शत्रु-सेना, नवीन सूर्य की किरणों के स्पर्श से कुमुद-कानन के समान उन्निद्रित सी हो गई। योद्धाओं के हाथ से तलवारें गिर कर छूट गई धनुर्धरों के बाण आधे मार्ग में ही गिर गये । रथारूढ़ों को जम्भाइयां आने लगी, अश्वारोही दीर्घ निःश्वास छोड़ने लगे। इस प्रकार प्रतिपक्ष की सेना के शिथिल हो जाने पर, हमारे सैनिकों में "मारो, मारो, पकड़ो, पकड़ो" का कोलाहल मच गया किन्तु उस राजकुमार के पराक्रम से अभिभूत वज्रायुध ने उन्हें रोका तथा उसकी चामरग्राहिणी से उसके विषय में पूछा । उसने बताया कि यह सिंहलेश्वर चन्द्र केतु का पुत्र समरकेतु है, जो अपने पिता की आज्ञा से राजा कुसुमशेखर की सहायता के लिए कांची आया है। आज प्रातः किसी अज्ञात कारण से शृंगार वेश धारण कर कामदेव मंदिर में गया था और नगर की स्त्रियों को देखते हुए पूरा दिन वहीं व्यतीत किया। कामदेव यात्रा की समाप्ति पर वहीं कमलपत्र की शय्या रचकर सो गया। अर्धरात्रि में अकस्मात् शिविर में आकर सेना को सज्जित किया और कांची से निकल पड़ा और यहां इस दशा को प्राप्त हुआ। इतने में ही प्रातःकाल हो गया। वज्रायुध ने प्रतिपक्ष की सेना के आश्वासनार्थ अभयप्रदान पटह बजवा दिया और समरकेतु को प्रेमपूर्वक अपने निवास स्थान में ले गया जहाँ सेवक के समान उसके व्रणों का उपचार किया तथा अंगुलीयक प्राप्ति का समस्त वृत्तान्त सुनाया। समरकेतु भी वज्रायुध के सौजन्य से अत्यधिक प्रभावित हुआ और आपसे मिलने की इच्छा प्रकट की, तब वज्रायुद्ध ने उसे मेरे साथ आपके पास भेज दिया।" उपसेनापति बिजयवेग वणित इस वृतान्त से सभी राजगण अत्यन्त विस्मित हो गये। मेघवाहन ने भी अपने महाप्रतीहार हरदास को तुरन्त भेजकर समरकेतु को वहीं बुला लिया। राजा ने तरल-स्निग्ध दृष्टिपात करते हुए उसे अपने उत्संग में बैठा लिया और पार्श्वस्थित हरिवाहन से कहा कि अद्यपर्यन्त
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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