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________________ धन पाल का जीवन, समय तथा रचनायें 23 इस कृति की विक्रम संवत् 1350 अर्थात् ई० सं० 1293 में लिखी गयी एक हस्तलिखित प्रति पाटण के जैन भंडार में सुरक्षित रखी है ।1 8. संस्कृत नाममाला यह नाममाला वर्तमान में उपलब्ध नहीं है, किन्तु इसका उल्लेख प्राप्त होता है। संस्कृत भाषा के व्याकरण, कोष, छंद, काव्य, अलंकारादि विषयक ग्रन्थों की एक प्राचीन हस्तलिखित सूची में कोष ग्रन्थ नं० 64 में "धनपालपंडितनाममाला" दिया गया है। यह नाममाला पाइयलच्छी से भिन्न प्रतीत होती है क्योंकि इसकी श्लोक संख्या 1800 है। अत: यह पाइयलच्छी से परिमाण में बहुत अधिक है। यह सूची केवल संस्कृत ग्रन्थों की है अतः यह नाममाला संस्कृत में लिखी गई होगी, यही संभावना है। धनपाल द्वारा किसी संस्कृत कोष के निर्माण की सम्भावना हेमचन्द्र के उल्लेख से भी होती है, जिसने अपने अभिधानचिंतामणि नामक संस्कृत कोश की स्वोपज्ञ टीका के प्रारम्भ में "व्युत्पत्तिर्धनपालत:" कहकर शब्दों की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में धनपाल के कोश को प्रमाणभूत माना है। इस कोश के लुप्त हो जाने से संस्कृत भाषा की अपूरणीय क्षति इस प्रकार इस अध्याय में अन्तः तथा बाह्य दोनों प्रकार के प्रमाणों से उपलब्ध सामग्री के आधार पर धनपाल के जीवन, समय तथा रचनाओं का विवेचन किया गया। अंत में यह कहा जा सकता है कि धनपाल के विषय में प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध होने के कारण, उनके समय का निर्धारण करने में, उनके जीवन की घटनाओं तथा उनकी रचनाओं के विषय में विद्वानों में अधिक मतभेद नहीं है। 1. (क) प्रभुदास, बेचरदास पारेख, तिलकमंजरीकथासारांश, पाटण, 1919, (ख) दोशी, बेचरदास, पाइयलच्छीनाममाला, पृ० 31, 1960 2. मुनि जिन विजय, पुरातत्व, अंक 2, खंड 4, अहमदाबाद, 1924 3. हेमचन्द्र, अभिधानचिन्तामणि-टीका, अध्याय 1, पृ. 1
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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