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________________ द्वितीय अध्याय तिलकमंजरी की कथावस्तु का विवेचनात्मक अध्ययन तिलकमंजरी कथा का सारांश उत्तरकौशल राज्य में सरयू नदी से परिगत अयोध्या नामक नगरी में राजा मेघवाहन राज्य करता था। उसने अपने राज्य में वर्ण, आश्रम और धर्म को यथाविधि स्थापित कर दिया था, अतएव वह यथार्थ प्रजापति था । उसने बाह्य और आन्तरिक दोनों शत्रुओं को जीत लिया था। उसका राजकार्य विश्वस्त मन्त्रियों के अधीन था, तथापि वह अपने शासन की त्रुटियों को जानने के उद्देश्य से, रात्रि में वेश बदलकर अपनी नगरी का निरीक्षण करता था। रूप तथा गुण दोनों में अद्वितीय मदिरावती नाम की उसकी प्रधान महिषी थी। यौवनोचित विविध भोग-विलासों का उपभोग करते हुए उसके कई वर्ष व्यतीत हो गये किन्तु उसे सन्तति-सुख की प्राप्ति नहीं हुई। अतः वह सन्तानाभाव की चिन्ता से अत्यन्त पीड़ित रहने लगा। __एक दिन उसने अन्तरिक्ष में विचरण करते हुए एक अत्यन्त तेजस्वी तथा दिव्य प्रभा-मण्डल से युक्त विद्याधर मुनि को देखा। राजा ने उसका विधिवत् आतिथ्य सत्कार किया तथा अपने सिंहासन पर बैठाया । मुनि के पूछने पर राजा ने अपने दुःख का कारण निवेदन किया तथा वन में जाकर तप करने का अपना निश्चय प्रकट किया । यह सुनकर मुनि ने अपने योग-बल से राजा के भविष्य को जान लिया और उसे कहा- "हे राजन् ! अब तुम्हारा सन्तति प्रतिबन्धक अदृष्ट मुक्तप्राय है, अतः तुम वनवास का विचार त्याग दो। घर में ही रहकर, तुम मुनि-व्रत धारण कर, अपनी कुलदेवी राज्यलक्ष्मी की अहर्निश आराधना करो, वही प्रसन्न होकर तुम्हें अवश्य वर प्रदान करेगी।" इसके लिए मुनि ने उसे अपराजिता नामक जप विद्या प्रदान की तथा मदिरावती को भी उसके व्रत-पर्यन्त दूर से ही मर्तृजनोचित सेवा करने की अनुमति प्रदान की।
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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