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तिलकमंजरी का साहित्यक अध्ययन
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गौः 3, 117, रोहिणी 150 । तर्णक गाय के वत्स के लिए प्रयुक्त हुमा है 64 । गवय 234, वन्य गो के लिए प्रयुक्त हुआ है।
(12) महिष 124, 134, 182, 183, 240, 409 । (13) मेष 150 (14) मार्जार-1121 (15) मूषिका-112
(16) मृग-73, 135, 175, 138, 122, 165, 217, 235, 253, 256, 333, 395 । हरिण 209, 222। सारंग-200। एण 135, एणक 182 । कृष्णसार 277 ।
(17) सोरभेय-118 । अनुडुह-118 वृषभ-119 वृष 124, 150 । ' (18) शरभ 116, 184, 200 मृग विशेष का नाम है ।
(19) शिवा-शृगाली 87, शिवाफेत्कारडामरः ।
(20) रासभ-46, 112 । वैताल के पैरों के नखों की कांति को गर्दभतुण्ड के समान धूसरित कहा गया है ।।
(21)व्याघ्र 2, 51। इसे अपने पराक्रम से अजित आहार का भक्षण करने वाला पशु कहा गया है । शार्दूल-47, 116 । द्विपि 183, 200, 351।
(22) वेसर-85 अश्वतर-1171 जलचर एवं सरीसृप तथा अन्य
1. अजगर-47, 200, 239, 409 । नीचे सोये हुए हप्त अजगरों के निःश्वास से वृक्ष के तने के हिलने का वर्णन किया गया है।
2. उर्णनाभ-मकड़ी 237 । 3. कुलीर-259 । केकड़ा 4. कुम्भीर-8 नक्र 145, 146, 269 जलचर विशेष ।
1 रासमप्रोथधूसरं नखप्रभाविसरम्........... -तिलकमंजरी, पृ. 51 2 व्याघ्रणामिवास्माकमात्मभुजविक्रमोपक्रीतमामिषमाहारम्,
-वही पृ. 46 3 अधःसुप्तहप्ताजगरनिःश्वासनतितमहातरूस्तम्बया.......तिलकमंजरी, पृ.200