________________
10
तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन
धनपाल ने यायावर कवि (राजशेखर) की उक्ति को मुनिवृत्ति के समान बताया है। राजशेखर का समय नवम् शती का अंत तथा दशम शती का पूर्वाद्ध निश्चित है । अतः धनपाल का समय दशम शती के पूर्वार्द्ध के बाद का ही है । इस प्रकार धनपाल के समय की प्रारम्मिक सीमा दशम शती का उत्तरार्ध निश्चित हो जाती है।
सीयक के पश्चात् उसके उत्तराधिकारी वाक्पतिराज II अपरनाम मुंज ने धनपाल को न केवल राज्याश्रय ही प्रदान किया, अपितु उसे अपनी सभा में "सरस्वती" विरुद देकर सम्मानित भी किया। धनपाल ने तिलकमंजरी में मुंज की 'एकाधिज्यधनुजिताब्धिवलयावच्छिन्नभूः' तथा 'सर्वविधाब्धि" कहकर प्रशस्ति की है । मुंज का शासन काल वि० सं० 1031 अर्थात् 974 ई० से पूर्व का है, क्योंकि उसका प्रथम शिलालेख वि० सं० 1031 का पाया गया है ।
प्रबन्धचिन्तामणि के कर्ता मेरूतुंग ने मुंजराजप्रबन्ध में मुंज तथा तलपदेव के युद्ध का वर्णन किया है । यह तैलपदेव कल्याण का राजा चालुक्य द्वितीय था, जिसने मुंज को युद्ध में हराया एवं अंत में मरवा दिया 18
. अमितगति ने मुंज के शासन-काल में वि०सं० 1050 अर्थात् ई०सं० 993 में अपना सुभाषितरत्न संदोह नामक ग्रन्थ समाप्त किया था। तैलप की
1. समाधिगुणशालिन्यः प्रसन्नपरिपवित्रमाः । यायावरकवेर्वाचो मुनीनामिव वृत्तय : ।
-तिलकमंजरी, पद्य 33 उपाध्याय, बलदेव, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ० 601, वाराणसी,
1968 .."अक्षुण्णोऽपि विविक्तसूक्तिरचने यः सर्वविधाब्धिना, श्रीमुंजेन सरस्वतीति सदसि क्षोणीभृता व्याहृतः ।।
___ -तिलकमंजरी, पद्य 53 4. तिलकमंजरी, पद्य 42 5. वही, पद्य 53 6. Buhler, G: Udepur Prasasti of the Kings of Malva,
Epigraphia Indica, Vol I.
मेरूतुंग; प्रबन्धचिन्तामणि, सिंधी-जैन-ग्रन्थमाला-1, पृ० 22-23 8. Tawney, C.H. (Ed. & Trans.) Introduction to Prabandha
cintamani p. 23. 9. , प्रेमी, नाथूराम; जैन साहित्य और इतिहास, पृ० 282