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________________ धनपाल का जीवन, समय तथा रचनायें रचनाओं की प्रशंसा की है । 1 धनपाल ने निम्नलिखित संस्कृत, प्राकृत एवं जैन ग्रन्थकारों तथा ग्रन्थों का उल्लेख किया है - वाल्मीकि, व्यास, बृहत्कथा (गुणाढ्य ) सेतुबन्ध के कर्ता प्रवरसेन, तरंगवती ( पादलिप्तसूरि), प्राकृत भाषा के कवि जीवदेव, कालिदास (पंचम शती), कादम्बरी तथा हर्षचरित के कर्ता बाणभट्ट तथा उनका पुत्र पुलिन्द ( सप्तमशती), माघ (सप्तमशती), भारवि (634 ई.), समणदित्यकथा (हरिभद्रसूरि, 8वीं शती), नाटककार भवभूति (अष्टम शती का पूर्वाद्ध), गौडवह के रचियता वाक्पतिराज (अष्टम शती), तारागण नामक ग्रन्थ के रचियता श्वेताम्बर शिरोमणि भद्रकीर्ति अथवा बप्पभट्टि ( 743 – 838 ), यायावर कवि राजशेखर (940 ई.), शोभन एवं धनपाल के गुरु महेन्द्रसूरि, त्रैलोक्यसुन्दरी कथा के कर्ता रूद्र एवं उनका पुत्र कर्दमराज 12 9 धनपाल द्वारा किया गया पूर्ववर्ती कवियों का यह स्मरण ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । इससे बृहत्कथा, 3 तरंगवती, 1 तारागण, त्रैलोक्य सुन्दरी जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थों का पता चला । ये ग्रन्थ कालान्तर में लुप्त हो गये तथा इन उल्लेखों द्वारा ही इनके अस्तित्व का पता चला । इसके अतिरिक्त जीवदेव, 7 पुलिन्द, भद्रकीर्ति, महेन्द्रसूरि, 10 रूद्र 11 एवं कर्दमराज 12 जैसे अज्ञात कवि प्रकाश में आए। ऐसा प्रतीत होता है कि धनपाल ने न केवल इनके ग्रन्थों का अध्ययन ही किया अपितु वह उनसे अत्यधिक प्रभावित भी हुआ । बाण तथा उनकी रचनाओं की प्रशंसा दो पद्यों में की गई है, जिससे बाण का उन पर विशेष प्रभाव स्पष्ट जान पड़ता है | 13 1. तिलकमंजरी - प्रस्तावना, पद्य 20-36 2. तिलकमंजरी, प्रस्तावना, पद्य 20-36 3. वही, पृ० 21 4. वही, पृ० 23 5. वही, पृ० 32 6. वही, पृ० 35 7. at, go 24 8. वही, पृ० 26 9. वही, पृ० 32 9 10. वही, पृ० 34 11. वही, पृ० 35 12. वही, पृ० 36 13. तिलकमंजरी, पद्य 26, 27
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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