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धनपाल का जीवन, समय तथा रचनायें
मृत्यु शक० स० 919 अर्थात् 997-98 में हुई, अतः मुंज का देहान्त ई०स० 994-98 के मध्य किसी समय हुआ होगा ।1 मुंज ने धारा को छोड़कर उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया था, क्योंकि उसका प्रथम दानपत्र, जो वि०स० 1031 का है, उज्जैन के राजदरबार से प्रसारित किया गया था । 2
मुंज अथवा वाक्पतिराज स्वयं विद्वान् कवि होते हुए भी अनेक कवियों का आश्रयदाता था । इस प्रकार मुंज का दरबारी कवि होने से धनपाल नवसाहसाकंचरित के प्रणेता पद्मगुप्त या परिमल, सुभाषितरत्नसंदोह के कर्ता अमितगति, दशरूपकावलोक टीका के कर्ता धनिक, पिंगल छन्दः सूत्र के टीकाकार हलायुध का समकालिक कवि था ।
धनपाल ने मुंज के अनुज तथा भोज के पिता सिन्धुल अथवा सिन्धुराज का आश्रय भी प्राप्त किया था । इन्हीं सिन्धुराज की आज्ञा से पद्मगुप्त ने नवसाहसांकचरित की रचना की थी 15
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डा० न्हूलर व सी० एच० टाउनी का मत
डा० व्हूलर तथा सी० एच० टाउनी धनपाल को मुंज के समय तक ही मानते हैं तथा भोज की सभा में उसके अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते ।" बहूलर के विचारों में परस्पर विरोध पाया जाता है । इन्हीं डा० बहूलर ने एक स्थान पर धनपाल को 'A protege of King Munja and Bhoja' कहा है ।" अन्तरंग एवं बाह्य प्रमाणों से भी यह सिद्ध होता है कि धनपाल ने सीयक, मुंज व सिन्धुराज के बाद भोज का भी आश्रय प्राप्त किया था ।
अन्तरंग प्रमाण
5.
6.
1.
शास्त्री, विश्वेश्वरनाथ; "मालवे के परमार' - सरस्वती, भग-14, 1913 2. Indian Antiquary, Vol. VI, p. 51-52.
3.
प्रेमी, नाथूराम, जैन साहित्य और इतिहास, पृ० 282
4.
Ganguly, D C.; History of Parmara Dynasty, p. 62-63.
7.
(1) तिलकमंजरी की प्रस्तावना में धनपाल ने स्पष्ट लिखा है कि
प्रेमी, नाथूराम; जैन साहित्य और इतिहास, पृ० 282,
(A) Buhler, G; Introduction to Paiyalacchi, p. 9. (B) Tawney. C. H. Introduction to Prabandhacintamani Buhler, G.; "The Author of the Paiyalacchi" Indian Antiquary, Vol, IV, p. 59.