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________________ तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन 173 तपाये गये नाराओं के तीव्रता से लगने पर नृपतियों के स्वर्णमुकुट विलीन हो जाते थे। मुकुट का अन्यत्र भी उल्लेख है। (५) स्त्रियों के सीमन्तक नामक शिरोभूषण का उल्लेख पाया है। तीवता से उतरने के कारण बिखरे हुए सीमन्तकाभूषण के माणिक्यों के सीढ़ियों पर लुढ़कने की मधुर ध्वनि उत्पन्न हो रही थी। कर्मामूषण ___ कर्णाभूषणों में कुण्डल, कर्णाभरण, कर्णपूर का उल्लेख है । कुण्डल - कुण्डल का चार बार उल्लेख किया गया है । हरिवाहन ने चन्द्रकांतमणि निर्मित कुण्डल कानों में पहने थे, जो नीति का उपदेश देने के लिए आये हुए बृहस्पति तथा शुक्र के समान जान पड़ते थे ।। मेघवाहन ने बायें कान में इन्द्रनीलमणि का कुण्डल पहना था । . कर्णाभरण कर्णाभरण का पांच प्रसंगों में उल्लेख है।' तारक ने पदमरागमणि का कर्णाभरण पहना था । गन्धर्वक ने इन्द्रनीलमणि युक्त कर्णाभरण धारण किये थे। शुकचंचु के आकार के पद्मरागमणि से अंकुरित कर्णाभरण का उल्लेख मिलता है ।10 एक मरिण मात्र से निर्मित कर्णाभरण का उल्लेख है।11 1. वेलग्नाग्नितप्तनाराचविलियमाननृपतिकांचतमुकुटानि........-वही, पृ. 83 2. वही, पृ. 74, 218 3. तारतरोच्चारेण गतिरमसविच्युतानामासाद्यासाद्य सोपानमरिणफलकमाबद्धफलानां सीमन्तकालंकारमाणिक्यानां............. -तिलकमंजरी, पृ. 158 4. वही, पृ. 53,90, 229,311 5. नयमार्गमुपदेष्टुममरगुरुभार्गवाभ्यामिवोपगताभ्यामिन्दुमणिकुण्डलाभ्यामाश्रितोभयश्रवणम्, -तिलकमंजरी, पृ. 229 6. वामेनदोलायमानविततेन्द्रनीलकुण्डलेन........-वही, पृ. 53 7. वही, पृ. 48, 125, 164,311,403 8. आसक्तकर्णाभरणपद्मरागरागाम् ... .... -वही, पृ. 125 9. इन्द्रनीलकर्णाभरणयों:........ -वही, पृ. 164 10. शुकचंच्वाकारकर्णाभरणपद्मरागरत्नांकुरेण........-वही, पृ: 311 11. एकैकमणिपवित्रिकामात्र कर्णाभरणं........ -वही, पृ. 403
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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