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________________ 174 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन 3. करणपूर कर्णपूर का उल्लेख केवल एक बार हुआ है। समरकेतु ने मोतियों का कर्णपूर पहना था । 1 गले के आभूषण गले के आभूषणों में हार निष्क, एकावली, प्रालम्ब, मुक्ताकलाप तथा कण्ठिका के उल्लेख हैं । हार 2 तिलकमंजरी में हार का उल्लेख अनेकों बार आया है " यह समस्त अलंकारों में प्रधान है । 3 ज्वलनप्रभ ने जवाकुसुम की कांति को हरने वाला, नायकमणि युक्त मुक्ताहार पहना था । गन्धर्वक के हार की छवि ऐसी जान पड़ती थी मानो वक्षःस्थल पर सूखे चन्दन का लेप किया गया हो। तिलकमंजरी शिव के अट्टहास के समान श्वेत हार धारण किया था । वैताच्य पर्वत को उत्तर दिशा का हार कहा गया है मलयसुन्दरी ने नाभिमण्डल को स्पर्श करने वाला हार पहना था 18 बन्धुसुन्दरी द्वारा हाथ फैला-फैला कर वक्षःस्थल को पीटने से उसके मुक्ताहार के मोती टूट-टूट कर गिरने लगे । एक प्रसंग में विशुद्ध मोतियों के हार का उल्लेख है । 10 froक यह स्वर्ण का आभूषण था, जिसे स्त्री तथा पुरुष दोनों ही गले में 1. कर्णपूरमोक्तिकस्तबकेन — तिलकमंजरी, पृ. 100 2. at, q. 22, 37, 43, 45, 54, 63, 100, 158, 160, 165, 233, 239, 247, 309, 396, 330, 404, 410, 411 3. वही, पृ. 22 4. वही, पृ. 37 5. शुष्क चन्दनांगरागसंदेह " हारच्छविपटलेन छुरितोरः कपाटम्, - वही पृ. 165 6. हासमिव हारं हारमुरसा 7. हारमिव वैश्रवणहरित: 8. नाभिचक्रचुम्बिनो हारनायकस्य" 9. वही पृ. 309 10. नरलायमानतारहा रच्छटा छोटितवक्षःस्थलं :-- . वही पृ. 247 -बही पृ. 239 वही पृ. 160 -वही पृ. 233
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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