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तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन
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अपना क्षौमयुगल भेंट में दे दिया था। मेघवाहन के विश्वस्त परिचारकों ने धुले हुए निर्मल क्षौमं वस्त्र धारण किये थे। नेत्रों की कांति को क्षौम वस्त्र के समान प्रांडु वर्ण का कहा गया है। एक उत्प्रेक्षा के प्रसंग में चन्द्रमा को पिण्डीकृत उत्तरीय क्षौम के समान कहा गया है । इससे ज्ञात होता कि क्षौम वस्त्र श्वेत रंग का होता था । क्षौम वस्त्र क्षुमा या अलसी नामक पौधे के रेशों से
बनता था ।
क्षौम का व्यवहार बहुत प्राचीन काल से चला आ रहा है । इसका सर्वप्रथम उल्लेख मंत्रायणी संहिता (3/6/7) और तैत्तिरीय संहिता ( 6/1/1/3) में आया है । कुसमी रंग के क्षौम परिधान का उल्लेख शांखायन आरण्यक में आया है ।" रामायण में अनेक स्थलों पर क्षौम के उल्लेख हैं । बौद्ध व जैन ग्रन्थों में भी क्षौम वस्त्र के उल्लेख मिलते हैं ।" काशी तथा पुंडू के क्षौम प्रसिद्ध थे । ? यह अत्यन्त कीमती व मुलाय मकपड़ा था अमरकोश में क्षौम व दुकूल को पर्याय माना गया है, किन्तु धनपाल के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि क्षौम तथा दुकूल भिन्नभिन्न वस्त्र थे । बाण ने भी दुकूल व क्षौम को अलग-अलग माना है । बाण ने शुक की उपमा मंदाकिनी के श्वेत प्रवाह से और क्षौम की दुधिया रंग के क्षीरसागर से दी है 18
।
पट्ट
यह पाट संज्ञक रेशमी वस्त्र था । मलयसुन्दरी ने कामदेव मंदिर जाते समय रक्ताशोक पुष्प के समान पाटल वर्ण के पट्ट वस्त्र का जोड़ा पहना था । अनुयोगद्वारसूत्र के अनुसार पट्ट, मलय, प्रंसुग, चीनासुय तथा किमिराग से पांच प्रकार के कीटज वस्त्र कहे गये हैं, अर्थात् पट्ट वस्त्र रेशम के कीड़ों से उत्पन्न किया जाता
दत्वा च सक्षौमयुगलम्,
जलक्षालन विमलनिरायामाक्षौमधरिणा
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1.
2.
3. लोचनयुगलस्य क्षौमपाण्डुलिभः
4.
उत्तरीयक्षौममिव पिण्डीकृतमिन्दुमण्डलम्, 5. मोतीचन्द्र, प्राचीन भारतीय वेशभूषा, पृ. 13
6. वही, पृ. 28
7. वही, पृ. 55
8.
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अग्रवाल वासुदेवशरण, हर्षचरितः एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ. 9. रक्ताशोकपुष्पपाटलं परिधाय पट्टवासोयुगलम् .....
-- वही पृ. 195 -वही पृ. 62 -वही पृ. 125 — तिलकमंजरी,
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पृ.
150
-- तिलक मंजरी, पृ. 300