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________________ तिलकमंजरी का सांस्कृतिक अध्ययन 155 था। जिनायतन में यात्रोत्सव पर भी मुर्जगजन वारविलासिनियों के साथ जलक्रीड़ा करते थे। भ्रमण राजकुमार क्रीड़ार्थ नगर के बाह्योद्यान में जाते थे, जहां सभी प्रकार के पुष्प एवं फलों के वृक्ष लगाये जाते थे। उनमें सघन लता-मण्डप सजाये जाते थे तथा इन उद्यानों में क्रीड़ा-गिरि, कृत्रिमापगा, कमल-पुष्करिणी, जल-मण्डप आदि निर्मित किये जाते थे। मेघवाहन क्रीड़ागिरि पर राजी के साथ भ्रमण करता था। स्वेच्छापूर्वक विहार कर.राजा अत्यधिक आनन्द प्राप्त करते थे। लक्ष्मी मेघवाहन को सुहृज्जनों के साथ विमान में बैठकर सम्पूर्ण पृथ्वी का भ्रमण करने के लिए कहती है। राजकुमार मन बहलाव के लिए अपने राज्य का भ्रमण भी करते थे। राजकुमारियां भी अपनी सखियों के साथ स्वेच्छापूर्वक वन-विहार पर निकल जाती थी। जहां वे विभिन्न प्रकार के खेल खेलने लगती थी, यथा कोई दोला रचने में लग जाती, कोई वल्कल-छिद्र से कपूर निकाल कर शरीर पर छिड़क लेती थी, कोई कर्णकपूर बनाने के लिए लवंगपल्लवों का संग्रह करती कोई सरोवर के किनारे सीपियों से निकले मोतियों से छत खेलने लगती तथा अन्य कोई पुष्प-चयन में लग जाती। मृगया राजकुमार अपने मित्रों के साथ घने जंगलों में हिंसक जन्तुओं का शिकार कर आनन्द प्राप्त करते थे ।' एण, अरण्यमहिष, सिंह, वराह, व्याघ्र, चमरादि इनके प्रमुख शिकार थे ।10 जहां वे जंगली जानवरों के शिकार से मनोरंजन करते, वहीं वे सुन्दर । हरिणों तथा अन्य पशु-पक्षियों के साथ विभिन्न प्रकार की किड़ाये करते हुए 1. वही, पृ, 158 2. तिलकमंजरी, पृ. 11, 17, 33,35,78, 180,390 3. वही, पृ. 17 4. वही, पृ. 42, 180 5. वही, पृ. 57 6. वही, पृ. 181 7. वही, पृ. 353 8. वही, पृ. 353 9. वही, पृ. 183 10. वही, पृ. 182-83
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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