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________________ 156 तिलकमंजरी एक सांस्कृतिक अध्ययन आन्नदित होते थे । हरिवाहन एवं उसके साथियों द्वारा कामरूप के जंगलों में इसी प्रकार की क्रीड़ाओं का स्वाभाविक वर्णन किया गया है - वे राजपुत्र किन्ही शावकों के शरीरों पर कुंकुम के बड़े-बड़े थापे लगा देते, किन्हीं के सिरों पर पुष्पशेखर बांध देते, किन्हीं के कान में रंग-बिरगे चंवर लटका देते, किन्हीं के सींग से पटाशुंक की पताका बांध देते, किन्हीं के गले में सोने के धुंघरुओं की माला पहना देते तथा किन्हीं की पूछ में पत्तों के फूल बांध देते ।1 इस प्रकार प्रतिदिन वे राजपुत्र उनके साथ क्रीड़ाएं करते थे । इसी प्रकार पालतू पक्षियों से भी क्रीड़ा करने के उल्लेख आये हैं । इसके अतिरिक्त राजा सयं अनेक प्रकार के वदन-मण्डनादि से अन्तःपुर की स्त्रियों का मनोरंजन करते थे । वालिकाओं को कन्दुक-क्रीड़ा अत्यन्त प्रिय थी 4 बालिकाएं गुड़ियों का विवाह रचाकर खेल खेलती थी । वसन्तोत्सव पर कृत्रिम हाथीयों तथा घोड़ों के खेल जनता के मनोरंजन के लिए दिखाये जाते थे । ___ इस प्रकार हमने देखा कि विदग्धजन जहां गोष्ठियों का आयोजन करके उनमें काव्य, आख्यान, आख्यायिका, दर्शन, निशास्त्र, नाटक, संगीत, चित्रकला आदि विविध विषयों पर परस्पर वाद-विवाद करके मस्तिष्क के व्यायाम के साथ मनोविनोद करते थे, वहीं छू त-क्रीड़ा, दोलायन्त्र भ्रमण, मृगयादि हल्के फुल्के साध ों से भी अपना मन बहलाया करते थे। वस्त्र तथा वेशभषा मनुष्य के जीवन में वस्त्र तथा वेशभूषा का अत्यधिक महत्व है। सुरुचिपूर्ण वेशभूषा मनुष्य के व्यक्तित्व को आकर्षक बना देती है। प्राचीन युग में भी वस्त्र-धारण की कला को अत्यधिक महत्व दिया गया था, अत: संस्कृत में इसके लिए आकल्प वेश, नेपथ्य, प्रतिकर्म ओर प्रसाधन शब्द आये हैं । वात्स्यायन 1. तिलकमंजरी, पृ. 183 2. वही, पृ. 364 3. कदाचिद्वदनमण्डादिविडम्बनाप्रकाररूपहसन्चिदूषकानन्तःपुरिकाजनमहासयत्। - वही, पृ. 18 4. पांचालिकाकन्दुकदुहितृकाविवाहगोचरामिः........शिशुक्रीडामिः, -वही, पृ. 168 तथा पृ..365 5. वही, पृ. 168 6. कृत्रिमतुरंगवारणक्रीडाप्राधानेषु प्रेक्षणकेषु, --वही, . 323
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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