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________________ तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन सीपियों से निकले मोतियों से द्य ूत-क्रीड़ा करने का उल्लेख किया गया हैं । 1 पुरुष एवं स्त्रियां भी परस्पर धत-क्रीड़ा से मनोरंजन करते थे । हरिवाहन ने तिलकमंजरी की सखी मृगांकलेखा के साथ अक्ष क्रीड़ा कर अपना मनोरंजन किया । 2 -क्रीड़ा के अन्यत्र भी उल्लेख आये हैं । बोला-क्रीड़ा 154 वसन्त मास में रमणीक उद्यानों में वृक्षों पर दोला रचकर झूलने में नगर निवासी अत्यधिक आनन्द का अनुभव करते थे । स्फटिक दोलायन्त्र पर बैठकर विलासी युगल आनन्द प्राप्त करते थे । दोला क्रीड़ा का अनेकथा उल्लेख किया गया है । जल-क्रीड़ा राजाओं की जल-क्रीड़ाओं के लिए राजभवनों में क्रीड़ा दीर्घिका, केलिवापियां. भवन दीर्घिकायें आदि निर्मित की जाती थी । इनमें राजा अन्तपुर की स्त्रियों के साथ जल-क्रीड़ा करते थे। मेघवाहन द्वारा अन्तःपुर की स्त्रियों के साथ जल-क्रीड़ा करने का वर्णन आया है, जिसमें वह उनकी जल में गिरी हुई अंगूठियों को खोज-खोज कर निकालने का खेल खेलना था तथा इस खेल के बहाने जल में डुबकी लगाकर वह उनके जघनाशु कों को खींच लेता था । दीर्घिकाओं में जल-क्रीड़ा के अतिरिक्त परस्पर पिचकारियों से कुंकुम युक्त जल छिड़क कर रंग खेलने का भी वर्णन किया गया है । अन्तःपुर की स्त्रियों द्वारा सिंचित मेघवाहन कनशृंग हाथ में लेकर उनके साथ जल क्रीड़ा करता था 17 वसन्तोत्सव पर वेश्याओं एवं विटों में परस्पर रंगभरी पिचकारियों से जल-सेक युद्ध हुआ करता 1. अपरः सरस्तीरविघटितशुक्तिमुक्तं मुक्ताफलं धूं तक्रिया प्रावर्तयत्, 2. मृगांकलेखया सावन क्षक्रीड़ा विनोदेन क्षणमात्रणस्थात् । 3. वही, पृ. 89, 219, 420 4. (क) अपरिस्फुटस्फटिक दोलासु गनान्तरा..... -वही, पृ. 3523 - वही, पृ. 370 बद्धासनविलासिमिथुनं खगाह्यमानग - वही, पृ. 11 -वही, पृ. 12 (ब) दोलाक्रीडासु दिगन्तरयात्रा, 5, तिलकमंजरी, पृ, 8, 11, 12, 17, 18, 105, 204, 213, 296 6. वही, पृ. 18 7. वही, पृ. 17 8. वही, पृ. 108
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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