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________________ रसाभिव्यक्ति स्वर में आदेश देने लगा ।1 यहां कटाक्षपात, रोमांच, पुलक, कम्पन, जम्भा, अंगभंग, वैस्वर्यादि अनुभावों का वर्णन हैं । अवहित्था-संचारी भाव की सुन्दर अभिव्यक्ति इसी प्रसंग में हुयी हैलज्जा के कारण वह कामदेव के विकारों को छिपाने के लिए विभिन्न प्रकार की चेष्टाएँ करने लगा मुझे एकटक देखने के कारण बहने वाले आनन्दाश्रुओं की धार को रत्नदर्पण के तेज से निकल रहे हैं, यह कहकर बार-बार पोंछता, मेरे लीलालापों में ध्यान देने के कारण शून्य हृदय से बन्दी को सुभाषित पढ़ाये | मेरे समागम के ध्यान में नेत्र बन्द कर चित्रफलक पर व्यर्थ ही रूप लिखने लगा | 2 यहां अश्र, नेत्रमीलनादि अनुभाव हैं । इस प्रकार धनपाल सम्भोग श्रृंगार को क्रमशः विकसित कर उसके सभी तत्वों, आलम्बन उद्दीपन, अनुभाव, व्यभिचारी भावों का सम्यक् वर्णन करने में अत्यन्त निपुण है । संभोग श्रृंगार के अन्य उदाहरण तारक तथा प्रियदर्शना, 3 हरिवाहन तथा तिलकमंजरी, 4 मलयसुन्दरी तथा समरकेतु के वर्णनों में भी मिलते हैं । 137 संभोग श्रृंगार के समान ही तिलकमंजरी में विप्रलम्भ शृंगार की भी मनोरम अभिव्यंजना हुई है, विशेषकर पूर्वराग विप्रलम्भ की । काव्यप्रकाश में विप्रलम्भ के पांच भेद वर्णित किये गये हैं- अभिलाष (अर्थात् पूर्वराग), ईर्ष्या ( या मान), विरह, प्रवास तथा शाप 16 हरिवाहन द्वारा तिलकमंजरी के चित्र अवलोकन से उत्पन्न अनुराग पूर्वराग विप्रलम्भ का उदाहरण है । 7 इसमें अभिलाष तथा चिन्तन काम - दशाओं का 1. सोऽपि नृपकुमारः.... निसर्गरोऽपि सागर इव.... प्रगत्मवागपि सगद्वदस्वरः स्वकर्नसु कर्णधारानतत्वरत् वही, पृ. 278 निहनोतुकामश्च लज्जयात्मनो मन्मथविकाराननेकानि चित्तहारीणि चेष्टितान्यकरोत् । तथा हि-मदवलोकनाबद्धस्यन्दमानान्दाश्रु बिन्दुविसरमति भास्वरेण....बीणाखानभावयत् । - तिलकमंजरी, पृ. 279 3. वही, पृ. 127-129 4. वही, पृ. 248 - 250, 362-63 5. वही, पृ. 310-313 6. अपरस्तु अभिलाषविरहेर्ष्याप्रवासशापहेतुक इति पंचविधः । तिलकमंरी, 2. 7. पृ. 162-174 - मम्मट, काव्यप्रकाश, चतुर्थ उल्लास, पृ, 123
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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