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तिलकमंजरी का साहित्यिक अध्ययन
वर्णन किया गया है ।1 तिल कमंजरी का चित्र आलम्बन विभाव है, उसका मौन्दर्य, अदृष्टसरोवरादि उद्दीपन विभाव हैं।
इसी प्रकार मलयसुन्दरी के इस वर्णन में विरह विप्रलम्भ शृंगार का उदाहरण मिलता है -अहमपि ततः प्रभृति ...मुहुर्मुहुः प्रमृष्टपर्यशृ नयना यथादृष्टमाकार तस्य नृपकुमारस्य संचार्य चित्रफलके सततमवलोकयन्ती....दुःसह प्रियवियोगः इत्युपजात करुणा च दोहदानुभावादिवापि विकसितानां विलासधिकानीलनलिनाकराणां प्रभान्धकारेषु रजनी शंकया विघटितानि मुग्धचक्रवाकमिथुनानि मिथः संयोजयन्ती....शोकविकला कंचित्कालमनयम् -पृ. 296-97 2 वीर
वीर रस का स्थायिभाव उत्साह है। वज्रःयुध तथा समरकेतु का धनुयुद्ध वीररस का उत्कृष्ट उदाहरण है । वज्रायुध के इस वर्णन में वीर रस की झलक मिलती है-सेनापतिस्तु तं तयोराकर्ण्य कर्णामृतकल्प जल्पमुपजात! रणरसोत्कर्षपुष्यत्पुलकजालकं सजलजीमूतस्तनितगम्भीरेण स्वरेण तत्क्षणादिष्टकिंकर ध्वनन्तमाजिदुन्दुभि....समरढक्कानां ध्वनितेन पातयन्निव सबन्धनान्यराति हृदयानि ...शिविरान्निरगच्छत् ।।
वीर रस की चरम परिणति समरकेतु के इस वर्णन में मिलती है। समरकेतु इतनी तीव्रता से बाण चला रहा है कि उस समय उसका दांया हाथ एक साथ ही तूणीर के अग्र भाग पर गुंथा हुआ सा, धनुष की डोरी पर लिखित सा, बाणों के पुखों पर खुदा हुआ सा तथा कर्णान्त पर अवतंसित सा जान पड़ता है ।4 मेघवाहन के वर्णन में भी वीररस का उदाहरण मिलता है ।।
1. न जाने कस्य सुकृतकर्मण :- शतयामेव क्थमपि क्षमा विराममभजत ।
___ -तिलकमंजरी, पृ. 175-177 2. वारंवारमन्योन्यकृततर्जनयोश्च-सायकाः प्रसश्रुः ।
वही, पृ. 89 3. वही, पृ. 86
अतिवेगव्यापृतोऽस्य तत्र क्षणे प्रोत इव तूणीमुखेषु, लिखित इव मौर्व्याम्, उत्कीर्ण इव पुखेषु, अवतसित इव श्रवण न्ते तुल्यकालमलक्ष्यत वामेत्तरः पाणिः ।
.. -तिलकमंजरी, पृ. 90 मुक्तमदजलासारकरिघटा सहस्रमेषमण्डलान्धकारिताष्ट दिग्भागेषु धनस्तनितघर्घरघूर्यमाणरथनिर्घोषेषु दर्पोत्पतत्पदातिकरतलतुलिततखारितडिल्लताप्रतानदन्तुरितान्तरिक्ष कुक्षिषु....यदीयसन्येषु सकलप्रतिपक्षलक्ष्मीजिघृक्षया ... निद्राक्षय मगच्छत्
-वही, पृ. 15-16