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रसाभिव्यक्ति
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मानते हैं 1 किन्तु मम्मट ने निर्वेद अर्थात् शम को नवां स्थायिभाव माना है। इन्हीं नौ भावों की परणति क्रमशः शृङ्गार, वीर, वीभत्स, रौद्र, हास्य, अद्भुत, भयानक, करूण तथा शान्त रसों में होती है।
घनपाल ने तिलकमंजरी को 'स्फुटाद्भुतरसा 'कथा कहा है। प्रभावकचरित में तिलकमंजरी को नवरसयुता कथा कहा गया है। इसमें सभी नौ रसों की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है ।अंगीरस शृंगार है तथा अन्य सभी उसके अंगभूत रस हैं। इसमें नायक हरिवाहन तथा तिलकमंजरी, जो पूर्वजन्म में स्वर्गलोक केनिवासी ज्वलनप्रभ तथा प्रियंगुसुन्दरी थे. की प्रेम-कथावर्णित की गयी है , तथा इसमें समर केतु और मलयसुन्दरी के प्रेम की प्रासंगिक कथा भी उपणित है। इसके अतिरिक्त तारक प्रियदर्शना, कुसुम शेखर व गन्धर्वदत्ता तथा मेघवाहन तथा मदिरावती आदि के प्रेम का भी वर्णन किया है। अतः शृगार इसका प्रधान अंगीरस है । अब सभी नौ रसों का तिलकमंजरी के संदर्भ में अध्ययन किया जायेगा । शृंगार ।
__ श्रृंगार का स्थायिभाव रति है। शृंगार रस के दो भेद हैं-(अ) सम्भोग तथा (आ) विप्रलम्भ । तिलकमंजरी में श्रृंगार के इन दोनों भेदों का भली-भांति निरूपण हुआ है।
(अ) सम्भोग शृगार की सुन्दर अभिव्यक्ति समरकेतु तथा मलयसुन्दरी के चित्रण में हुयी है । समरकेतु आलम्बन विभाव है, जो मलयसुन्दरी के हृदय में प्रेम की उत्पत्ति करता है । सर्वप्रथम आलम्बन समरकेतु का वर्णन किया गया है । मलयसुन्दरी उसे देखती है और कहती है
“कामदेव ने शृंगार धारण कर मेरे हृदय में प्रवेश किया, उसके पीछेपीछे ही प्रवेश करने वाला राग, लाक्षारस से चिन्हित के समान सारे अंगों में फैल गया । वैरागी देवता के निवास पर रागियों का रहना विरुद्ध है," अतः उस राग को धोने के लिए ही मानों स्वेदजल बहने लगा। स्वेदजल से ठंड
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1. शममपि केचित्प्राहुः पुष्टिर्नाटयेषु नेतस्य ।
वही, 4/35 2. निर्वेदस्थायि भावोऽस्ति शान्तो ऽपि नवमो रसः ।
__ -मम्मट, काव्यप्रकाश, 4/47 स्फुटाद्भुतरसा रचिता कथेयम् ॥
-तिलकमंजरी, पद्य 50 4. सुधीरविरचयांचके कथां नवरसप्रथाम् ।
__-प्रभावकचरित, महेन्द्रसूरिचरितमु पद्य 197 5. तस्य शृगारस्य द्वौ भेदो, सम्भौगो विप्रलम्भश्च
-मम्मट काव्यप्रकाश, चतुर्थ उल्लास, पृ. 121