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________________ तिलकमंजरी का साहित्यक अध्ययन 127 समान वस्तु के संयोग का आनन्द प्राप्त करें, क्योंकि यह हार भी मुक्तामय है आप भी मुक्तामय (मुक्त मामय अर्थात् व्याधि रहित शरीर से युक्त), यह भी अपेतत्रास है (अर्थात् धारण करने वाले को भय मुक्त करने वाला) तथा आप भी स्वच्छ हृदय वाले हैं यह भी उज्जवल गुण से युक्त है तथा आप भी गुणव'न् हैं। यहां मेघवाहन तथा हार का योग्य रूप से सम्बन्ध वर्णित किया गया है, अतः सम अलंकार है। विषम ___ सम्बन्धियों के अत्यन्त वैधर्म्य के कारण जो उनका सम्बन्ध न बनना प्रतीत हो, वहां विषम अलंकार होता है। प्रभात-काल के वर्णन में विषम अलंकार प्रयुक्त हुआ है-रतिगृह दात्यूहपक्षी के कूजन से रहित हो गये हैं, नदियां चक्रवाक युगलों के आक्रन्दन से युक्त हो गयी हैं, तारों की कान्ति क्षीण हो रही है, दीपक की ज्योति तेज हो रही है, आकाश में सूर्य उदित हो रहा है, पृथ्वी अंधकारमय है, इस प्रकार प्रभात और रात्रि का यह सन्धिक्षण मनोहरता की पराकाष्ठा है। यहां विपरीत वस्तुओं का एक साथ वर्णन होने से विषम अलंकार है । तदगुण जब न्यून गुणवाली वस्तु अत्यन्त उत्कृष्ट गुणवाली वस्तु के सम्बन्ध से अपने स्वरूप को छोड़कर उस वस्तु के रूप को प्राप्त हो जाती है तो उसे तद्गुण अलंकार कहते हैं। 1. ....... संयोजितं त्वां मुक्तामयवपुषमशेषतो मुक्तामयत्रासविरहितमपेतत्रासः स्वच्छाशयमतिस्वच्छो गुणवन्तमतिशयोज्जवगुणः प्राप्नोतु सदृशवस्तुसंयोगजां प्रीतिम् । -तिलकमंजरी, पृ. 43 2. क्वचिद्यतिवैधान्न श्लेषो घटनाभियात् -मम्मट, काव्यप्रकाश, 10/193 3. नित्यूहपतद्गिरो रतिगृहा: साक्रन्दचक्रा नदा, विद्राति द्य तिरोडवी निबिडतां धत्ते प्रदीपच्छवि । द्योर्मन्दस्फुरितारूणा तिमिरिणी सर्वसंहा सर्वथा, सीमा चित्तमुषामुषः क्षणदयोः संघिक्षणो बर्तते ॥ -तिलकमंजरी, पृ. 237 4. स्वमुत्सृज्य गुणं योगादत्युज्जवलगुणस्य यद, . वस्तु तद्गुणतामेति भव्यते स तु तद्गुणः ॥ -मम्मट, काव्यप्रकाश, 10/203
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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