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________________ 128 तिलकमंजरी, एक सांस्कृतिक अध्ययन आराम के वर्णन में इस उक्ति में तद्गुण अलंकार पाया गया है-कमल के पत्ते पर गिरी हुयी जल की बून्द भी मोती के समान चमकती है, चन्द्रमा में रहने पर कलंक भी अलंकार बन जाता है, मृगनय नियों की आंखों में लगने पर अंजन भी प्रसाधन बन जाता है ।। __यहां न्यून गुण वाली वस्तु जल की बूंद आदि का उत्कृष्ट गुण वाले कमल पत्रादि के सम्बन्ध से उत्कृष्ट गुण को प्राप्त करने का उल्लेख होने से तद्गुण अलंकार है। सहोक्ति जहां सह अर्थ की सामर्थ्य से एक पद, दो पदों से सम्बद्ध हो जाता है वहाँ सहोक्ति अलंकार होता है। तिलकमंजरी में प्रातःकाल के इस वर्णन में सहोक्ति का प्रयोग हुआ है(प्रातःकाल होने पर) वनदीपिकाओं में चक्रवाक युगल निद्रा त्यागकर तथा पख फड़फड़ाकर कुमुदों के साथ-साथ परस्पर मिल गये । (कुमुद के पक्ष में जघटिरे का अर्थ संकुचित हो गये)। यहां सह पद के कारण चक्रवाक तथा कुमुद दोनों पदों का सम्बन्ध बनता है, अतः सहोक्ति अलंकार हैं । अन्य उदाहरण(1) झटिति नष्टाखिलाशः समं मार्तण्डमण्डलाभोगेन विच्छायतामगच्छम् -पृ. 323 (2) इति विचिन्त्य मुक्त्वा च सफलकं प्रभुताभिमानेन साधं कृपाणमाबद्धांजलिः-पृ. 38। व्याजस्तुति प्रारम्भ में निन्दा अथवा स्तुति जान पड़ती हो, किन्तु उससे भिन्न (अर्थात् निन्दा स्तुति तथा स्तुति निन्दा में) में पर्यवसान होने पर व्याजस्तुति अलंकार होता है। 1. पद्मिनीदलोत्संगसंगी जलबिन्दुरपि मुक्ताफलद्युतिमालम्बते, मृगांकचुम्बी कंककोऽप्यलंकारकरणिं घत्त, कुरङ्गलोचनालोचनलब्धपदमंजनमपि मण्डनायते । -तिलकमंजरी, पृ. 213 सा सहोक्तिः सहार्थस्य बलादेकं द्विवाचकम् । -मम्मट, काव्यप्रकाश 10/169 3. समकालमुत्क्षिपपत्रसंहतीनि सहैव कुमुदरण्यदीपिकासु जघटिरे नष्टनिद्राणि चक्रवाकद्वन्द्वानि । -तिलकमंजरी, पृ. 358 4, व्याजस्तुतिमुखे निन्दास्तुतिर्वा रूढिरन्यथा । -मम्मट, काव्यप्रकाश, 10/168
SR No.022662
Book TitleTilakmanjari Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Gupta
PublisherPublication Scheme
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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